चातुरमास की
महीमा
श्री हरी कहते
है – हे धर्मराज सुनो, चातुर्मास मे किये जान वाले पुण्य और उनके परिणाम
१.
जो व्यक्ति मंदिर को सुन्दर पुष्प से सजाता है , जो मंदिर मे सफ़ाई
करता है और रास्ते को गाय के गोबर से लीप कर साफ़ करता है ( रास्ते को इस तरह से बनाता
है की चलने वाले के पैर मे कंकर ना चुभे ) उसे अपने अगले सात जन्म ब्रहामण (उच्च कुल
) में जन्म लेता है ।
२.
जो व्यक्ति पंचाम्रित (दूध घी मधू शक्कर दही ) श्री हरी स्वर्ण
प्रतीमा को अर्पित करेगा , वह मर्णोप्रांत उच्च
पद प्राप्त करेगा । जो किसी ब्र्हामण को दान मे स्वर्ण , जमीन दान करेगा वह
अगले जन्म मे धन्वान होगा और इन्द्र के समान सुख भोगेगा ।
३.
जो श्री हरी को तुलसी दल अर्पित करेगा वह मर्णोप्रांत स्वर्ग मे
उच्च पद प्राप्त करेगा और जो श्री हरी की गुग्गल और घी दीप से पूजा करेगा वह असीम धन
पायेगा ।
४.
जो पीपल की पूजा करेगा वह वैकुंठ लोक प्राप्त करेगा । दीपदान करने
वाला और व्रत कर के हवन करने वाला दिव्य रथ में सवार होकर स्वर्ग जायेगा ।
५.
चातुरमास में गायत्री मंत्र का जप करने वाले से पाप दूर रहते है
। शिव की या श्री हरी की स्वर्ण प्रतीमा दान करने वाले से भी पाप दूर रहते है और वह
व्यक्ति धनवान बनता है ।
६.
इस दौरान चन्द्रायान का व्रत करने वाले और केवल दूध पी कर रहे
उसे ब्रह्मलोक मे स्थान मिलता है और उस व्यक्ति के वंशज प्रलय तक धरती में रहते है
। यानी उसके वंश का नाश नही होता ।
७.
जो व्यक्ति चातुरमास के दौरान खट्टा , मीठा और कढ्वा का त्याग
करता है उसे ससांरिक दुखों से मुक्ती मिलती है । इसके अलावा चातुरमास में सावन में
शाक (पत्ति वाली सब्जी ) भादो में दही का अश्विन में दूध का और कार्तिक में दाल का
त्याग करता है वह निरोगी होता है ।
८.
जो व्यक्ति चातुरमास मे शिव या विष्णु का ध्यान करता है और एक
ही वक्त भोजन करता है उसे निश्चित ही स्वर्ग मिलता है ।
९.
चातुरमास मे ब्र्हामण की सेवा करने वाले या ब्र्हामण को यथा शक्ति
दान देने वाले की उम्र और सम्पदा बढती है । जो व्यक्ति स्वर्ण का सूर्य ब्र्हामण को
दान देता है वह हज़ार यग्य के समान पुण्य प्राप्त करता है ।
जो ब्र्हामण का आदर करेगा
और चातुरमास के बाद उसे अनाज दान करेगा उसे संपदा और संसारिक सुख की प्राप्ती होगी
।
जो व्यक्ति दिन मे नही सोता और सायं
काल मे ब्र्हामण को भोजन करवाता है उसे शिव लोक की प्राप्ती होती है ।
१०.
जो व्यक्ति चातुरमास में उचित व्रत करता है वह गन्धर्वों की कला
मे निपुण होता है और स्त्रियों में लोकप्रिय होता है ।
११.
जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को वश मे रखता है ब्र्हमचार्य का पालन
करता करता है और सात्विक रहते हुये अपने इष्ट की सेवा करता है वह कई पुण्य की प्राप्ती
करता है ।
अपनी क्षमता के अनुसार सब्जी, फ़ल , धन और कपढा दान
देने वाला राजयोग पायेगा ।
सुपारी और तम्बखू का दान करने वाला और
चतुरमास में इनका त्याग करना वाला सुंदरता , मधुर वाणी , निरोगी शरीर , समझदारी पाता
है । सुपारी का दान धन को बढाता है ।
माता लक्ष्मी और माता पार्वती को जो हल्दी
अर्पित करेगा और व्रत के बाद चांदी के बर्तन में हल्दी का दान करेगा वह अपने जीवनसाथी
के साथ समस्त संसारिक सुख भोगते हुए अन्त मे स्वर्ग पायेगा ।
ब्र्हामण को मोती दान करने वाला प्रसिद्धी
पायेगा ।
चातुरमास के उपरांत किसी योग्य ब्र्हामण
को दान देना चाहिये और अपने व्रत का उद्यापन करना चाहिये । यह चातुरमास अनेक स्थायी
पुण्यों का कारक है तथा हर हिन्दु को इसका लाभ उठाना चाहिये । चातुरमास में भ्रमण करना
भी निशेद है ।
आदेश आदेश अलख निरंजन
गुरू गोरखनाथ जी को आदेश
शिव नाथ
No comments:
Post a Comment