नवार्ण मंत्र-
मंत्र क्या है ?
मंत्र शब्दों का संचय होता है, जिससे इष्ट को प्राप्त कर सकते हैं और अनिष्ट बाधाओं को नष्ट कर सकते हैं । मंत्र इस शब्द में ‘मन्’ का तात्पर्य मन और मनन से है और ‘त्र’ का तात्पर्य शक्ति और रक्षा से है ।
अगले स्तर पर मंत्र अर्थात जिसके मनन से व्यक्ति को पूरे ब्रह्मांड से उसकी एकरूपता का ज्ञान प्राप्त होता है । इस स्तर पर मनन भी रुक जाता है मन का लय हो जाता है और मंत्र भी शांत हो जाता है । इस स्थिति में व्यक्ति जन्म-मृत्यु के फेरे से छूट जाता है ।
मंत्रजप के अनेक लाभ हैं, उदा. आध्यात्मिक प्रगति, शत्रु का विनाश, अलौकिक शक्ति पाना, पाप नष्ट होना और वाणी की शुद्धि।
मंत्रजप से जो आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होती है उसका विनियोग अच्छे अथवा बुरे कार्य के लिए किया जा सकता है । यह धन कमाने समान है; धन का उपयोग किस प्रकार से करना है, यह धन कमाने वाले व्यक्ति पर निर्भर करता है ।
मंत्र की परिभाषा
मंत्र शब्द की विभिन्न परिभाषाएं हैं, जो उसके आध्यात्मिक सूक्ष्म भेदों को समझाती हैं । सामान्यत: मंत्र का अर्थ है अक्षर, नाद, शब्द अथवा शब्दों का समूह; जो आत्मज्ञान अथवा ईश्वरीय स्वरूप का प्रतीक है । मंत्रजप से स्व-रक्षा अथवा विशिष्ट उद्देश्य साध्य करना संभव होता है । मंत्र को दोहराते समय विधि, निषेध तथा नियमों का विशेष पालन करना आवश्यक होता है । यह मंत्र तथा मंत्र साधना (मंत्रयोग) का महत्त्वपूर्ण अंग है ।
बीज मंत्र क्या है ?
एक बीजमंत्र, मंत्र का बीज होता है । यह बीज मंत्र के विज्ञान को तेजी से फैलाता है । किसी मंत्र की शक्ति उसके बीज में होती है । मंत्र का जप केवल तभी प्रभावशाली होता है जब योग्य बीज चुना जाए । बीज, मंत्र के देवता की शक्ति को जागृत करता है ।
प्रत्येक बीजमंत्र में अक्षर समूह होते हैं । उदाहरण के लिए – ॐ, ऐं,क्रीं, क्लीम्
ॐ का रहस्य क्या है
ॐ को सभी मंत्रों का राजा माना जाता है । सभी बीजमंत्र तथा मंत्र इसीसे उत्पन्न हुए हैं । इसे कुछ मंत्रों के पहले लगाया जाता है । यह परब्रह्म का परिचायक है ।
ॐ का रहस्य- निरंतर जप का प्रभाव
ॐ र्इश्वर के निर्गुण तत्त्व से संबंधित है । र्इश्वर के निर्गुण तत्त्व से ही पूरे सगुण ब्रह्मांड की निर्मित हुई है । इस कारण जब कोई ॐ का जप करता है, तब अत्यधिक शक्ति निर्मित होती है । यह ॐ का रहस्य है।
ॐ का महत्वपूर्ण रहस्य यह है कि ॐ के चिन्ह का कहीं भी चित्रण करना, र्इश्वर से संबंधित सांकेतिक चिन्हों के साथ खिलवाड करना है और इससे पाप लगता है ।
नवार्ण मंत्र महत्व:-
माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी की साधना-उपासना के क्रम में, नवार्ण मंत्र एक ऐसा महत्त्वपूर्ण महामंत्र है | नवार्ण अर्थात नौ अक्षरों का इस नौ अक्षर के महामंत्र में नौ ग्रहों को नियंत्रित करने की शक्ति है, जिसके माध्यम से सभी क्षेत्रों में पूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है और भगवती दुर्गा का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है यह महामंत्र शक्ति साधना में सर्वोपरि तथा सभी मंत्रों-स्तोत्रों में से एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है। यह माता भगवती दुर्गा जी के तीनों स्वरूपों माता महासरस्वती, माता महालक्ष्मी व माता महाकाली की एक साथ साधना का पूर्ण प्रभावक बीज मंत्र है और साथ ही माता दुर्गा के नौ रूपों का संयुक्त मंत्र है और इसी महामंत्र से नौ ग्रहों को भी शांत किया जा सकता है |
नवार्ण मंत्र-
|| ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ||
नौ अक्षर वाले इस अद्भुत नवार्ण मंत्र में देवी दुर्गा की नौ शक्तियां समायी हुई है | जिसका सम्बन्ध नौ ग्रहों से भी है |
ऐं = सरस्वती का बीज मन्त्र है ।
ह्रीं = महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है ।
क्लीं = महाकाली का बीज मन्त्र है ।
ह्रीं = महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है ।
क्लीं = महाकाली का बीज मन्त्र है ।
इसके साथ नवार्ण मंत्र के प्रथम बीज ” ऐं “ से माता दुर्गा की प्रथम शक्ति माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है, जिस में सूर्य ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के द्वितीय बीज ” ह्रीं “ से माता दुर्गा की द्वितीय शक्ति माता ब्रह्मचारिणी
की उपासना की जाती है, जिस में चन्द्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
की उपासना की जाती है, जिस में चन्द्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
नवार्ण मंत्र के तृतीय बीज ” क्लीं “ से माता दुर्गा की तृतीय शक्ति माता चंद्रघंटा की उपासना की जाती है, जिस में मंगल ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
नवार्ण मंत्र के चतुर्थ बीज ” चा “ से माता दुर्गा की चतुर्थ शक्ति माता कुष्मांडा की
उपासना की जाती है, जिस में बुध ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई
है |
उपासना की जाती है, जिस में बुध ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई
है |
नवार्ण मंत्र के पंचम बीज ” मुं “ से माता दुर्गा की पंचम शक्ति माँ स्कंदमाता की उपासना की जाती है, जिस में बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
नवार्ण मंत्र के षष्ठ बीज ” डा “ से माता दुर्गा की षष्ठ शक्ति माता कात्यायनी की उपासना की जाती है, जिस में शुक्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के सप्तम बीज ” यै “ से माता दुर्गा की सप्तम शक्ति माता कालरात्रि की
उपासना की जाती है, जिस में शनि ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
उपासना की जाती है, जिस में शनि ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के अष्टम बीज ” वि “ से माता दुर्गा की अष्टम शक्ति माता महागौरी की उपासना की जाती है, जिस में राहु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के नवम बीज ” चै “ से माता दुर्गा की नवम शक्ति माता सिद्धीदात्री की उपासना की जाती है, जिस में केतु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है l
नवार्ण मंत्र की सिद्धि 9 दिनो मे 1,25,000 मंत्र जाप से होती है,परंतु आप येसे नहीं कर सकते है तो रोज 1,3,5,7,11,21….इत्यादि माला मंत्र जाप भी कर सकते है,इस विधि से सारी इच्छाये पूर्ण होती है,सारइ दुख समाप्त होते है और धन की वसूली भी सहज ही हो जाती है।
हमे शास्त्र के हिसाब से यह सोलह प्रकार के न्यास देखने मिलती है जैसे ऋष्यादी,कर ,हृदयादी ,अक्षर ,दिड्ग,सारस्वत,प्रथम मातृका ,द्वितीय मातृका,तृतीय मातृका ,षडदेवी ,ब्रम्हरूप,बीज मंत्र ,विलोम बीज ,षड,सप्तशती ,शक्ति जाग्रण न्यास और
बाकी के 8 न्यास गुप्त न्यास नाम से जाने जाते है,इन सारे न्यासो का अपना एक अलग ही महत्व होता है,उदाहरण के लिये शक्ति जाग्रण न्यास से माँ सुष्म रूप से साधकोके सामने शीघ्र ही आ जाती है और मंत्र जाप की प्रभाव से प्रत्यक्ष होती
है और जब माँ चाहे किसिभी रूप मे क्यू न आये हमारी कल्याण तो निच्छित ही कर देती है।
हमे शास्त्र के हिसाब से यह सोलह प्रकार के न्यास देखने मिलती है जैसे ऋष्यादी,कर ,हृदयादी ,अक्षर ,दिड्ग,सारस्वत,प्रथम मातृका ,द्वितीय मातृका,तृतीय मातृका ,षडदेवी ,ब्रम्हरूप,बीज मंत्र ,विलोम बीज ,षड,सप्तशती ,शक्ति जाग्रण न्यास और
बाकी के 8 न्यास गुप्त न्यास नाम से जाने जाते है,इन सारे न्यासो का अपना एक अलग ही महत्व होता है,उदाहरण के लिये शक्ति जाग्रण न्यास से माँ सुष्म रूप से साधकोके सामने शीघ्र ही आ जाती है और मंत्र जाप की प्रभाव से प्रत्यक्ष होती
है और जब माँ चाहे किसिभी रूप मे क्यू न आये हमारी कल्याण तो निच्छित ही कर देती है।
मन्त्र को जाग्रत करने के
लिये सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें
विनियोग :- ॐ अस्य श्री कुन्जिका स्त्रोत्र मंत्रस्य सदाशिव ऋषि:॥
अनुष्टुपूछंदः ॥ श्रीत्रिगुणात्मिका देवता ॥
ऐं बीजं ॥ ह्रीं शक्ति: ॥ क्लीं कीलकं ॥
मम सर्वाभीष्टसिध्यर्थे जपे विनयोग: ॥
मम सर्वाभीष्टसिध्यर्थे जपे विनयोग: ॥
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।
अथ मंत्र :-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।''
।।इति मंत्र:।।
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।
धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
।इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्।
नवार्ण मंत्र साधना विधी:-
विनियोग:
ll ॐ अस्य श्रीनवार्णमन्त्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दासि, श्रीमहाकाली महालक्ष्मी
महासरस्वती प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ll
न्यास :
१. ऋष्यादिन्यास :
ब्रम्हविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः शिरसि।
गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दोभ्यो नमः मुखे।
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः हृदि ।
ऐं बीजाय नमः गुह्ये ।
ह्रीं शक्तये नमः पादयो ।
क्लीं कीलकाय नमः नाभौ ।
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे :- इस मूल मन्त्र से हाथ धोकर करन्यास करें।
१. ऋष्यादिन्यास :
ब्रम्हविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः शिरसि।
गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दोभ्यो नमः मुखे।
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः हृदि ।
ऐं बीजाय नमः गुह्ये ।
ह्रीं शक्तये नमः पादयो ।
क्लीं कीलकाय नमः नाभौ ।
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे :- इस मूल मन्त्र से हाथ धोकर करन्यास करें।
२. करन्यास:
ॐ ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
(दोनों हाथों की तर्जनी अँगुलियों से अंगूठे के उद्गम स्थल को स्पर्श करें )
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
( दोनों अंगूठों से तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श करें )
ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः ।
( दोनों अंगूठों से मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श करें )
ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः ।
( दोनों अंगूठों से अनामिका अँगुलियों का स्पर्श करें )
ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
( दोनों अंगूठों से छोटी अँगुलियों का स्पर्श करें )
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
( हथेलियों और उनके पृष्ठ भाग का स्पर्श )
३. हृदयादिन्यास :
ॐ ऐं हृदयाय नमः ।
ॐ ऐं हृदयाय नमः ।
(दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों से ह्रदय का स्पर्श )
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा ।
(शिर का स्पर्श )
ॐ क्लीं शिखायै वषट् ।
(शिखा का स्पर्श)
ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम् ।
( दाहिने हाथ की अँगुलियों से बाएं कंधे एवं बाएं हाथ की अँगुलियों से दायें कंधे का स्पर्श)
ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट् ।
( दाहिने हाथ की उँगलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और मस्तक में भौंहों के मध्यभाग का स्पर्श)
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट ।
( यह मन्त्र पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे ले जाकर दाहिनी ओर से आगे लाकर तर्जनी और मध्यमा अँगुलियों से बाएं हाथ की हथेली पर ताली बजाएं।
४. वर्णन्यास :
**इस न्यास को करने से साधक सभी प्रकार के रोगों से मुक्त हो जाता है**
ॐ ऐं नमः शिखायाम् ।
ॐ ह्रीं नमः दक्षिणनेत्रे ।
ॐ क्लीं नमः वामनेत्रे ।
ॐ चां नमः दक्षिणकर्णे ।
ॐ मुं नमः वामकर्णे ।
ॐ डां नमः दक्षिणनासापुटे ।
ॐ यैं नमः वामनासापुटे ।
ॐ विं नमः मुखे ।
ॐ च्चें नमः गुह्ये ।
इस प्रकार न्यास करके मूलमंत्र से आठ बार व्यापक न्यास (दोनों हाथों से शिखा से लेकर पैर तक सभी अंगों का ) स्पर्श करें।
**अब प्रत्येक दिशा में चुटकी बजाते हुए निम्न मन्त्रों के साथ दिशान्यास करें:**
५. दिशान्यास:
५. दिशान्यास:
ॐ ऐं प्राच्यै नमः ।
ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः ।
ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः ।
ॐ ह्रीं नैऋत्यै नमः ।
ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः ।
ॐ क्लीं वायव्यै नमः ।
ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः ।
ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे उर्ध्वायै नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः ।
६. सारस्वतन्यास :
**इस न्यास को करने से साधक की जड़ता समाप्त हो जाती है**
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः हृदयाय नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिरसे स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिखायै वषट् ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः कवचाय हुम् ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः अस्त्राय फट ।
**इस न्यास को करने से साधक की जड़ता समाप्त हो जाती है**
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः हृदयाय नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिरसे स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिखायै वषट् ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः कवचाय हुम् ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः अस्त्राय फट ।
७. मातृकागणन्यास :
**इस न्यास को करने से साधक त्रैलोक्य विजयी होता है**
ह्रीं ब्राम्ही पूर्वतः माँ पातु ।
ह्रीं माहेश्वरी आग्नेयां माँ पातु ।
ह्रीं कौमारी दक्षिणे माँ पातु ।
ह्रीं वैष्णवी नैऋत्ये माँ पातु ।
ह्रीं वाराही पश्चिमे माँ पातु ।
ह्रीं इन्द्राणी वायव्ये माँ पातु ।
ह्रीं चामुण्डे उत्तरे माँ पातु ।
ह्रीं महालक्ष्म्यै ऐशान्यै माँ पातु ।
ह्रीं व्योमेश्वरी उर्ध्व माँ पातु ।
ह्रीं सप्तद्वीपेश्वरी भूमौ माँ पातु ।
ह्रीं कामेश्वरी पतालौ माँ पातु ।
**इस न्यास को करने से साधक त्रैलोक्य विजयी होता है**
ह्रीं ब्राम्ही पूर्वतः माँ पातु ।
ह्रीं माहेश्वरी आग्नेयां माँ पातु ।
ह्रीं कौमारी दक्षिणे माँ पातु ।
ह्रीं वैष्णवी नैऋत्ये माँ पातु ।
ह्रीं वाराही पश्चिमे माँ पातु ।
ह्रीं इन्द्राणी वायव्ये माँ पातु ।
ह्रीं चामुण्डे उत्तरे माँ पातु ।
ह्रीं महालक्ष्म्यै ऐशान्यै माँ पातु ।
ह्रीं व्योमेश्वरी उर्ध्व माँ पातु ।
ह्रीं सप्तद्वीपेश्वरी भूमौ माँ पातु ।
ह्रीं कामेश्वरी पतालौ माँ पातु ।
९. ब्रह्मादिन्यास
**इस न्यास को करने से साधक के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं**
ॐ सनातनः ब्रह्मा पाददीनाभिपर्यन्त मा पातु ।
ॐ जनार्दनः नाभिर्विशुद्धिपर्यन्तं मा पातु ।
ॐ रुद्रस्त्रिलोचनः विशुद्धेर्ब्रह्मरन्ध्रांतं मा पातु ।
ॐ हंसः पदद्वयं मा पातु ।
ॐ वैनतेयः करद्वयं मा पातु ।
ॐ वृषभः चक्षुषी मा पातु ।
ॐ गजाननः सर्वाङ्गानि मा पातु ।
ॐ आनंदमयो हरिः परापरौ देहभागौ मा पातु ।
**इस न्यास को करने से साधक के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं**
ॐ सनातनः ब्रह्मा पाददीनाभिपर्यन्त मा पातु ।
ॐ जनार्दनः नाभिर्विशुद्धिपर्यन्तं मा पातु ।
ॐ रुद्रस्त्रिलोचनः विशुद्धेर्ब्रह्मरन्ध्रांतं मा पातु ।
ॐ हंसः पदद्वयं मा पातु ।
ॐ वैनतेयः करद्वयं मा पातु ।
ॐ वृषभः चक्षुषी मा पातु ।
ॐ गजाननः सर्वाङ्गानि मा पातु ।
ॐ आनंदमयो हरिः परापरौ देहभागौ मा पातु ।
१०. महालक्ष्मयादिन्यास :
**इस न्यास को करने से धन-धान्य के साथ-साथ सद्गति की प्राप्ति होती है **
ॐ अष्टादशभुजान्विता महालक्ष्मी मध्यं मे पातु ।
ॐ अष्टभुजोर्विता सरस्वती उर्ध्वे मे पातु ।
ॐ दशभुजसमन्विता महाकाली अधः मे पातु ।
ॐ सिंहो हस्त द्वयं मे पातु ।
ॐ परंहंसो अक्षियुग्मं मे पातु ।
ॐ दिव्यं महिषमारूढो यमः पादयुग्मं मे पातु ।
ॐ चण्डिकायुक्तो महेशः सर्वाङ्गानी मे पातु ।
**इस न्यास को करने से धन-धान्य के साथ-साथ सद्गति की प्राप्ति होती है **
ॐ अष्टादशभुजान्विता महालक्ष्मी मध्यं मे पातु ।
ॐ अष्टभुजोर्विता सरस्वती उर्ध्वे मे पातु ।
ॐ दशभुजसमन्विता महाकाली अधः मे पातु ।
ॐ सिंहो हस्त द्वयं मे पातु ।
ॐ परंहंसो अक्षियुग्मं मे पातु ।
ॐ दिव्यं महिषमारूढो यमः पादयुग्मं मे पातु ।
ॐ चण्डिकायुक्तो महेशः सर्वाङ्गानी मे पातु ।
११. बीजमन्त्रन्यास :
ॐ ऐं हृदयाय नमः ।
ॐ ऐं हृदयाय नमः ।
(दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों से ह्रदय का स्पर्श )
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा ।
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा ।
(शिर का स्पर्श )
ॐ क्लीं शिखायै वषट् ।
ॐ क्लीं शिखायै वषट् ।
(शिखा का स्पर्श)
ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम् ।
( दाहिने हाथ की अँगुलियों से बाएं कंधे एवं बाएं हाथ की अँगुलियों से दायें कंधे का स्पर्श)
ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट् ।
( दाहिने हाथ की उँगलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और मस्तक में भौंहों के मध्यभाग का स्पर्श)
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट ।
( यह मन्त्र पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे ले जाकर दाहिनी ओर से आगे लाकर तर्जनी और मध्यमा अँगुलियों से बाएं हाथ की हथेली पर ताली बजाएं।
विलोम बीज न्यास:- *इस न्यास को समस्त दुःखहर्ता के नाम से भी जाना जाता है**
ॐ च्चै नम: गूदे ।
ॐ विं नम: मुखे ।
ॐ यै नम: वाम नासा पूटे ।
ॐ डां नम: दक्ष नासा पुटे ।
ॐ मुं नम: वाम कर्णे ।
ॐ चां नम: दक्ष कर्णे ।
ॐ क्लीं नम: वाम नेत्रे ।
ॐ ह्रीं नम: दक्ष नेत्रे ।
ॐ ऐं ह्रीं नम: शिखायाम ॥
ॐ विं नम: मुखे ।
ॐ यै नम: वाम नासा पूटे ।
ॐ डां नम: दक्ष नासा पुटे ।
ॐ मुं नम: वाम कर्णे ।
ॐ चां नम: दक्ष कर्णे ।
ॐ क्लीं नम: वाम नेत्रे ।
ॐ ह्रीं नम: दक्ष नेत्रे ।
ॐ ऐं ह्रीं नम: शिखायाम ॥
१३. मन्त्रव्याप्तिन्यास:
**इस न्यास को करने से देवत्व की प्राप्ति होती है**
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे मस्तकाचरणान्तं पूर्वाङ्गे (आठ बार ) ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे पादाच्छिरोंतम दक्षिणाङ्गे (आठ बार) ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे पृष्ठे (आठ बार) ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे वामांगे (आठ बार) ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे मस्तकाच्चरणात्नं (आठ बार) ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे चरणात्मस्तकावधि (आठ बार) ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।
ध्यान मंत्र:-
खड्गमं चक्रगदेशुषुचापपरिघात्र्छुलं भूशुण्डीम शिर: शड्ख संदधतीं करैस्त्रीनयना
सर्वाड्ग भूषावृताम । नीलाश्मद्दुतीमास्यपाददशकां सेवे
महाकालीकां यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम ॥
सर्वाड्ग भूषावृताम । नीलाश्मद्दुतीमास्यपाददशकां सेवे
महाकालीकां यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम ॥
माला पूजन:-
जाप आरंभ करनेसे पूर्व ही इस मंत्र से माला का पुजा कीजिये,इस विधि से आपकी माला भी चैतन्य हो जाती है.
जाप आरंभ करनेसे पूर्व ही इस मंत्र से माला का पुजा कीजिये,इस विधि से आपकी माला भी चैतन्य हो जाती है.
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नंम:’’
ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिनी ।चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥ ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृहनामी दक्षिणे करे । जपकाले च सिद्ध्यर्थ प्रसीद मम सिद्धये ॥ ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देही देही सर्वमन्त्रार्थसाधिनी साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा।
नवार्ण मंत्र :-
ll ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ll
(Aing hreeng kleeng chamundayei vicche )
आदेश. आदेश.