Sunday, 6 April 2014

साबर मंत्र महिमा







 शाबर मंत्र महिमा 

शाबर मंत्र नाथ योगियो का एक अभिन्न अंग है । आदी -  अनादी काल से गुरू शिष्य परमप्रा इस मंत्र से जुडी है । सतगुरू शब्द ही मंत्र है । “गुरू शिष्य मंत्र तीनो एक स्वभाव” । 




श्री नाथ सिद्धो का मुख्य स्तोत्र साबर मंत्र ही है । इन मंत्रो की मूल रचना श्री आदीनाथ जी के पुत्र / शिष्य सिद्ध योगी माया रूपी दादा मत्स्येन्द्रनाथ जी ने की है ।



      एक समय श्री सिद्ध योगी दादा मत्स्येन्द्रनाथ जी ने कामरू देश कामाख्या सिद्ध पीठ पर अती घोर तप करा | जब आदीनाथ जी और माता गौरजा पार्वती प्रसन्न हुए तो उन्होने पूछा की पुत्र हमारी तपस्या क्यु  करी और तुम्हारी क्या मनोकामना है ।

सिद्ध मत्स्यन्द्रनाथजी बोले - हे आदीनाथ जी और शक्ति  गौरजा मा मैने लोक कल्याण, दुःख निवारण तथा उत्तम कार्य सिद्धि हेतू मंत्र लिखे है । इन सब मंत्रो को मा गौरजा पार्वती  अपनी शक्ती दे और आदीनाथ जी अपनी सिद्धता चेतना और प्रमाणता दे ।

इस पर महादेव शिव और शक्ती स्वरूपा मा पार्वती ने उन्हे शिवरात्री के पावन अवसर पर 

कैलाश पर आमंत्रित करा । 
शिवरात्री पर कैलाश पहुंचने पर सिद्ध योगी मतस्यन्द्रनाथ ने शिव पार्वती को आदेश करा और नाद बजाया। आदीनाथ जी और गौरजा माता जी के आशिर्वाद के बाद उन्होने अपनी बीज रूपी साबर रचना सादर दिखाई ।
शिव पार्वती ने प्रसन्न होकर उन मंत्रो को प्रमाणिकता देने के लिये कैलाश पर त्रिलोक के सभी देवी ,देवता ,ऋषीगण , मुनी , महात्मा , अनंत शक्तिया प्रधान दैत्य दानव इत्यादी  को कैलाश पर आमंत्रित करा ।  
 साधु तथा योगी

  

 आदीनाथ जी तथा भगवती पार्वती
 ब्रह्मा जी 
  विष्णु 
                    

  
                           इद्र देव
काल रात्री   

                         कालभैरव

 महाकाल  
       दैत्य  
     गन्धर्व 

         
                                

             विष्णु - लक्ष्मी जी, ब्रह्मा- ब्रह्माणीजी , इन्द्र इन्द्रियाणीजी , यक्ष- यक्षणी, किन्नर, गन्धर्व, नारदा, शारदा, श्री गणेश – गणाध्यक्ष, 11 रुद्र , अष्ट भैरव, नव ग्रह, अग्नि , यम , वायू , वरुण , अष्टकुल नाग , वासुकि , काल ,  महाकाल , घोर , अघोर ,धरती , गंगा , जमुना , सरस्वती आदी नदिया , सप्त समुद्र , धर्म , 52 वीर , महावीर ,

  अष्ट भैरव   
 पिशाच

  
                                    

 पाताल भैरव , कुबेर , ऋदी – सिद्धी , 9 दुर्गा , महाकाली , महालक्षमी , महासरस्वती, 10 महाविद्या , 64 जोगने , ऋषी पत्त्निया, अनंत सिद्ध जती सती वृषी , मुनी , साधू , संत , सन्यासी , बैरागी , त्रिशूल , शूल , वज्र , चक्र , गदा , दण्ड , खडांग , पाश , तथा मडी वेताल , शांखनी , दाकनी , डैन , चुडैल , फनिद्रा , भूत , प्रेतात्मा , 12 फरिस्त्या , दुष्ट – मुष्ट , नर्सिंघ वीर , अजयपाल , सभी शिव शक्ती के दर्शन हेतू कैलाश आ गये ।
 कुबेर 
   नाग
                               
 पाताल भैरव
रुद्र 
  नर्सिंघ वीर
 यम
 प्रमर्थ  

     
               
 यक्ष  
यक्शणी 
        
                      
                 
                             
           
                                              
      कैलाश पर विशाल भण्डारा आयोजित हुआ । सभी ने आदीगुरू आदिनाथ महादेव तथा शक्ति  महामाया पार्वती की पूजा करी और फिर कैलाश पर निमंत्रण का कारण पूछा । तब महादेव जी ने बताया की – हे देवी देवताओ , दैत्यगणो , इत्यादी भक्त्जनो हमारे पुत्र और शिष्य सेद्ध मत्स्यन्द्रनाथ ने नाथ सिद्धो की साबर मंत्र रचना की है जिसमे अनेक मंत्र तंत्र गायत्रिया मंत्र पाठ , जाप , पूजन, योग़िक़ मंत्र अस्त्र शस्त्र मंत्र, बाना मंत्र , विभूती , नाद , रुद्राक्श, खप्पर चिमटा, त्रिशूल , भंडार, धर्ती, आकाश, पंच्तत्व , धूना , घोर अघोर , काल महाकाल फट्कार त्रिकाल जगरण , मारण , बन्ध, किल , योग माया इत्यादी साबर मंत्रो की सुचारू बद्ध रचना की है । इनसे तीन लोक के सर्व साधक सभी के कल्याण के लिये और मोक्श मुक्ती को पा सकेंगे । इसलिये आप सभी इन शाबर मंत्रो की सिद्धता / चेतना हेतु शक्ति संक्रमन करके तथा इन साबर मंत्रो मे जिस जिस नामो से जिस समय जो – जो कार्य हेतु पुकारा जाये तो उसी – उसी देवता दैत्य आदी शक्तिया सम्पूरण सहयोग करके इन मंत्र तंत्र को प्रभावशाली चेतनात्म्क सिद्ध करे । ताकी यह साबर मंत्रो से लोक कल्याण , दुख , कष्ट , संकट का निवारण हो कर महाकार्य सिद्ध हो सके ।

आदीनाथ और पार्वती गणो के साथ

                
      सभी की हामी मिलने पर महादेव जी ने और पार्वती जी ने कहा – हे पुत्र, हम प्रसन्नता से वचनबद्ध है । हमारे नाम जो भी साबर मंत्र मे किसी भी समय आवाहन करंगें और क्क्र्य सिद्ध करने को कहेंगे तो हम आयेंगे और यथा शक्ति कार्य पूरण करके देंगे ।
      यह मंत्र तुम्हारे शिष्य / चेले भक्त सेवक जिन्होने यह मंत्र गुरुमुख से ग्रहण करे है और फिर नियम विधी से हमे पुकारेंगे तो हम आने के लिये वचनबद्ध है । इसी प्रकार सभी ने अपना अपना सहयोग इन मंत्रो मे दिया और कार्य सिद्धी के लिये वचनबद्ध हुए । सबने अपने – अपने नियम-विधी  बताये । अगर कोई गुरू मुख से मंत्र ग्रहण करे और बताये गये नियम से किसी को भी पुकारेगा तो कर्य सिद्धी हेतु आने का वचन दिया ।  
  
  
         अतः माया मत्स्यन्द्रनाथ जी ने शिवजी पार्वती जी को आदेश करा और साबरी मे उनकी वन्दना की । तब से ही सबर मंत्र सिद्ध मंत्र हुए और नाथ सिद्धो का अभिन्न अंग बन गये ।

आदेश आदेश – आदीनाथ जी को आदेश , उदयनाथ जी माता पार्वती जी को आदेश गुरूजी को आदेश ।   
                  
गुरू गोरक्षनाथ जी को आदेश