Wednesday, 4 July 2018

ब्र्हमाण्ड-शास्त्र






ब्र्हमाण्ड-शास्त्र
अति बलशाली देवराज इन्द्र में अनेकों गुण है । पर देवराज की पदवी स्थाई नही है । सबसे बलशाली, विवेकी , निर्भीक देव ही इस पदवी के लिये चुना जाता है । 

देवराज अत्यधिक चौकन्ने, बलशाली, नीतिवान, कुशल सेनाध्यक्ष , न्याय नीति का जानकार, तिलस्मी , चतुर ,  और विवेकी देव ही बनते है ।  हर देवराज इन्द्र एक मनवन्त्र तक इस पदवी मे रहता है ।

 इसी तरह सभी देव एक निछ्चित समय तक अपनी पदवी में रहते है । अग्नी देव, वायु- देव , देव गुरू, वेदव्यास , वरुण, सुर्य देव,  इत्यादी सभी एक पदवी है जिनमें उचित देवता ही आसीन होता है । उसका काल और शक्तियां लगभग एक मनवन्त्र तक रहती है और उसके बाद फ़िर से चुनाव ….. यही देव कानून है ।

जिस प्रकार अगले मनवन्त्र मे असुर राज बली को देवरज इन्द्र की पदवी मिलना तय है और वेदव्यास की पदवी अश्वथामा जी को । अश्वथामा को उससे अगले मन्वन्त्र मे सप्त्रिशियों मे एक बनना तय है ।

हर देव पदवी की परिक्षा होती है और जो उतीर्ण हो वो ही पदवी का हकदार होगा । यह परिक्षा हर पदवी के लिये होती है ।

यमराज, चित्रगुप्त , नक्षत्र , प्रजापति , सभी ग्रहों के अधिपती (बुध, शनि, सोम, मंगल, धरा, इत्यादी) । उतीर्ण देव , उपदेव , असुर , सिद्ध …. जो भी परिक्षा में सफ़ल हो उसे पदवी और उससे संबधित जिम्मेवारी दी जाती है ।

ब्र्ह्माण्ड  सुचारु रूप से चले इसके लिये कुछ पद बनाये गये । अलग अलग लोक से पद भरे भी गये ।

 इन परिक्षाओं मे   देवता ,यक्ष, किन्नर, गन्धर्व, नारदा, शारदा, नाग , अघोरी , यक्षणियां, ऋषी पत्त्निया, अनंत सिद्ध, मुनी , साधू , संत , सन्यासी , बैरागी , मडी वेताल , शाकिनी , डाकिनी , डैन , चुडैल , फनिद्रा ,भूत ,प्रेतात्मा ,वीर ,प्रमथ , जिन्न  -  इत्यादी कई प्रजातियां भाग लेती है ।

उधारण के लिये समस्त देवो में श्री गणेश ने प्रतियोगिता जीत कर प्रथम पूज्य और गणाघ्य्क्ष के पद के लिये चुने गये ।

परम ज्ञानी देवता  और सुर्य पुत्र “यम”  मृत्यु के अधिपती बने और साथ मे दक्षिण दिशा के दिकपाल  का पदभार भी संभाला ।


कई देवियां नदियों की अधिपती बनी और कई देव ग्रहो और पर्वतों के अधिपती बने ।

नक्षत्रों ने राहु- केतु को भाग्य फ़ल का भार दिया और शिव पुत्र श्री कार्तिकय अपने विषेश गुणों के कारण नक्षत्रों के अधिपती बने और अपनी वीरता के कारण देव-सेनापती का पदभार भी संभाला


इसके अलावा कितने ही पिशाच , प्रेत, डाकिनि, शाकिनि , शक्तियां , चुडैल , फनिद्रा ,भूत  इत्यादी अस्त्रों – शस्त्रों , वज्र , चक्र , बाण , त्रिशूल , गदा , पाश इत्यादी के अधिपती बने । अस्त्र मे इनका आवाहन करने मे ये शक्तियां उस अस्त्र मे खुद विराजमान होती है और आवाहान करने वाले का कार्य सिद्ध करती है ।


जैसे सिद्ध रावण को मारने के लिये श्री राम ने देवि तारा का आवाहन करा था । देवि तारा श्री राम के बाण मे विराजमान हो गयी थी और रावन का वध बाण ने नही देवी तारा ने करा था ।


यह अस्त्र दिव्य अस्त्र की श्रेणी मे आते है और साधक को इन्हे पाने के लिये खास साधना करनी पडती है । इसके अलावा कुछ अस्त्र प्रदान भी करे जाते है योग्यता के अनुसार ।


श्री हरी विष्णु के साथ नौ नाथ , नौ नाग और चौरासी सिद्ध ब्र्हमाण्ड का कार्य भार संभालते है ।

यह सभी पदाधिकारियों के कार्य क्षेत्र में  चौदह लोकों के अलावा भुमण्डल का भी भार आता है ।

यह दण्ड/ पुरस्कार अपने कार्यक्षेत्र  में देते है जैसे की पहले से ही लिखे गये है । यह ब्र्हमाण्ड के नियम है और इनमे कर्म का बहुत ही महत्व है । 

इस प्रकार हमारा यह ब्र्हमाण्ड सुचारु रूप से चलता है । यही लोकपाल – दिकपाल ,देव, क्षेत्रपाल , इत्यादी हमारे पूज्य है और मानव इन्ही की पूजा करते है ।


यह सभी शक्तियां पूर्ण रूप से जाग्रत रहती है और अपने कार्यक्षेत्र में सावधानी से अपना कार्य करतीं है । इन्हे प्राप्त विषेश शक्तियां इन्हे अपने कार्य करने मे मदद करती है । हर पद के लिये पदाधिकारी को विषेश अस्त्र और शक्ती प्रदान करी जाती है ।


उध्हारण  के लिये श्री हरी विष्णु जी को कुमुद गदा, सारंग धनुष तथा सुदर्शन चक्र प्रदान करा गया । यह सभी अस्त्र पूरी तरह से जाग्रत है और अपने स्वामी का हर आदेश मानने को तत्पर भी ।


यह हमारे ब्र्ह्माण्ड की कार्य शैली है । इस प्रकार से सब सुचारू रूप से चलता है । बिना किसी रुकावट के ।


आदेश आदेश सदगुरू श्री योदी योगेन्द्रनाथ जी को आदेश

गुरू गोरक्षनाथ जी को आदेश