Saturday, 28 March 2015

कलियुग





कलियुग ने अपने पैर महाभारत के युद्ध से लगभग ६२५ वर्ष पहले रख दिये थे । उसका असर धीरे-धीरे बढता ही जा रहा है ।

कहते है की प्रजापती ब्रहमा जी ने अपने प्रिष्ठ भाग से एक अत्यन्त मैला और

पापी पुरुष पैदा करा । उसका नाम अधर्म प्रसिद्ध हुआ । उसका विवाह मिथ्या से

हुआ जिसके नेत्र बिल्ली के समान थे । दम्भ उनका पुत्र हुआ और माया नाम 

की पुत्री ।

दम्भ और माया से लोभ और निक्रिती नाम के पुत्र और पुत्री हुई । 

लोभ

और निक्रिती ने क्रोध नाम का पुत्र हुआ और हिंसा नामक पुत्री !

क्रोध और हिंसा से कली उत्पन्न हुआ| कली ने अपने दाहिने हाथ मे

अपनी जिव्हा और बाये हाथ मे अपना लिंग (शिश्न) पकडे था।

कली बडे मुख वाला और काले वर्ण का बालक हुआ जिससे बद्बू आती

थी। उसका वास जुए, स्त्री, मदिरा और सुवर्ण मे था । उसकी बहिन

दुरक्ति और उससे भय नामक पुत्र और म्रित्यु नामक पुत्री हुई । इनके

पुत्र निरय और बहन यातना ने जिन्होने सहस्त्र रूपो वाले लोभ नामक

पुत्र उत्पन्न करे ।

इस प्रकार कलि के वंश में असंख्य धर्मनिन्दक सन्तान उत्पन्न होती गईं।

यह एक विवरण है जो कलियुग की विषेशता दर्शाता है । आईये थोडा 
और विस्तार से इस युग को समझते है ।

समाज -
धरती पर हर तरफ़ ऐसे पुरूषो और स्त्री का विस्तार हो जायेगा जो 

कामी और कटू वचन बोलने वाले होगे ।

मनुष्य गोत्र का ध्यान रखे बिना विवाह करेगे और वर्ण का ह्रास होगा, 
विचित्र बिमारियो का उदय होगा अनेक तरह की व्याधियो से मनुष्य 

ग्रसित होगा और आयु कम होती जायेगी । बर्बर राजा बनेगे और 

अनेक तरह से खूनी संघर्ष इसके गुण है ।

मनुष्य शारिरिक रूप से कमजोर होते जायेगे और याददाश्त भी कम 

हो जायेगी । घरती और नदियो मे गंदगी बड जायेगी ।

पैसा और दौलत ही सर्वोपरी होगी और मनुष्य उसे पाने के लिये 

किसी 

भी हद तक गिरेगा । दौलत ही कुल व्यवहार और कला का मापडन्ड 

करेगी। दौलत ही न्याय का मापडन्ड बनेगी । दरिद्र मनुष्य अपराधी 

माना जायेगा ।

स्त्री-पुरुष मे वासना ही एकमात्र आकर्षण का कारण होगी और 

सम्भोग करने की कला को ही पौरष या स्त्रित्व माना जायेगा ।

स्त्रियो का राज होगा, और नारी आजादी से अनेक पुरुषो से सम्भोग 

मे व्यस्त रहेगी और अनेक पुरुषो से सम्बन्ध रखेगी । स्त्रिया केश 

खूले रखेगी और पुरुष स्त्रियो मे ही आसक्त रहेगे । अपने स्वामी का 

अपमान करने और अल्प भाग्य वाली स्वछन्द स्त्रिया होगी ।

दूध ना देने वाली गाय का त्याग होगा और गौ वध सामन्य बात 
होगी 
। माता-पिता, भाई मित्र से ज्यादा पुरुष स्त्री को महत्व देगे । भाई से 
ज्यादा महत्व साले का होगा ।

बहुत कम पैसे के लिये भी विग्रह करके मित्र और प्रिय का त्याग 
करेगे और अपने प्राण भी सन्कट मे डालेगे। मनुष्य अपने बुजुर्गो की, 
माता – पिता की, पुत्र की और कुलीन पत्नी की रक्षा नही करेगे । 
नौकर अपने उत्तम और धनहीन मालिक का त्याग कर देगे। पूजा 
पाठ मे किसी की रूची नही रहेगी ।

मलीन, अधार्मिक, चतुर, फ़रेबी मनुष्यो का बोलबाला रेहेगा । दौलत 
कमाने वाले की ही प्रसिद्धी होगी और वही कुलीन माना जायेगा। चोरो 
और अपराधियो का बोलबाला रेहेगा। नीच मनुष्य उच्च पद को प्राप्त 
होगे ।

धर्म

तीर्थ सिर्फ़ दूर सफ़र करना कहलायेगा । जल के कुण्ड और जल के 

स्तोत्र ही धार्मिक स्थान माने जायेगे ।जनेउ पहनने वाला ब्र्हामण 

कहलायेग। धर्म सिर्फ़ पाखण्ड रह जायेगा । लोग धर्म की निन्दा करने 
मे प्रसन्न होकर धर्म के विरुद्ध तर्क करेगे । धार्मिक ग्रन्थ दुषिद हो 

जायेंगे और मनुष्य उनका उपहास करेगे । लोग बिना स्नान करे 


अग्नी, देवता और अतिथी का पूजन करेगे । पितरो का पिन्ड दान 

की 

क्रिया का त्याग होगा और मनुष्य पित्र दोषो से पिडित रहेगे ।


दरिद्र मनुष्य अधार्मिक माना जायेगा (साधू इत्यादी) विवाह सिर्फ़ 

आपसी सहमती से हो जायेगे । सिर्फ़ अपनी प्रतिश्ठा के लिये लोग 

धार्मिक होने का ढोग करेगे।

शुद्र दान लेगे और अपना वेश तपस्वी का धर कर जीविका चलायेगे । 
अधार्मिक लोग उच्च आसन पर बैठ कर धर्म का उपदेश देगे । साधू 

लोग निन्दित व्यवसाय करने को मजबूर होगे ।

अधर्म बढेगा और लोग दुराचारी, निर्दय, व्यर्थ मे वैर करने वाले और 

अल्प भाग्य वाले हो जायेगे । यह युग तमस प्रधान होगा और लोग 

हिंसा विषाद मोह भय निद्रा मे समय बितायेगे । सभी ज्यादा भोजन 

करने वाले, आलसी, कामी हो जायेगे। तपस्वी लोग ग्रामवासी होगे 

और सन्यासी अर्थलोलुप होगे। स्त्रिया अपवित्र, अतीभोजी, बहुत 

सन्तान वाली, निर्लज्जा, सदा कटु बोलनी वाली होगी।

अधार्मिक लोग धर्म को कमजोर करने का लगातार प्र्यास करेगे और 

अन्त मे धर्म को खत्म ही कर देगे । उनके धर्म विरुद्ध तर्क लोगो के 

मन मे धर्म के लिये शका पैदा कर देगे ।

गुरू धर्म की जगह विचारक हो जायेगे। धर्म के नाम पर वितर्क 

करेगे 

और लोगो को भ्रमित करेगे । विचारक धर्म की अनेक परिभाषायें बनायेंगे और धर्म का उपहास करेंगे । 


राजा -

नेता और राजा लोग शुद्र प्राय होगे। सिन्धु नदी की घाटी कांची 

और 
चिनाब नदी की घाटी कश्मीर मण्डल मे शुद्र , वात्य , म्लेच्छः तथा 

ब्र्हमचार्य से रहित लोग शासन करेगे । ये सभी राजा शुद्र और 

म्लेच्छ 

प्राय होगे तथा तीव्र क्रोध वाले, बालक , गौ , ब्र्हमण को मारने वाले 

और दूसरे की स्त्री और धन का अपहरण करेगे। क्रियाहीन , अहंकारी , 
कामी तमो गुण से ग्रसित राजा रूपी ये म्लेच्छ प्रजा को खा जायेगे 

और इन्ही गुणो वाले अन्य राजाओ से उसी गती को प्राप्त होगे ।

धरती –

लगतार शोषण से धरती अपनी उर्वरकरता से हीन हो जायेगी । 

मौसम 
मे अप्रयाशित बदलाव आयेगे । धरती वासी अत्यधिक ठण्ड से और 

अत्याधिक गर्मी से परेशान होगे । भूकम्प, बाड, सूखे इत्यादी त्रासदी 

की मात्रा बढ जायेगी । ठण्डी हवा, बर्फ़ गर्मी वर्षा इत्यादी सभी 

अपनी 

चरम मे होगी ।

मौसम से परेशान, लोग बीज, पत्ते, मछली, मास, जडे, शहद खा 

कर 

जीवन व्यतीत करगे । गाय का दूध उपलब्ध नही होगा । गाय का 

स्थान बकरी ले लेगी ।

लोभी, डाकू और अधर्मी राजाओ द्वारा धन और स्त्री से रहित लोग 

पहाडो, गुफ़ाओ, वनो मे पलायन कर जायेगे । प्यास और भूख से 

पिडित लोग नष्ट होने लगेगे ।

धर्म मे सिर्फ़ पाखण्ड रह जायेगा, डाकू और चोर राजा बनेगे, सभी 

सम्बन्धो मे और रिश्तो मे वासना और सम्भोग का आधिपत्य हो 

जायेगा । घर सिर्फ़ रहने का स्थान होगा । इन्सान की आयू बीस 

वर्ष 
की रह जायेगी और कन्या ८ वर्ष मे गर्भ धारण कर लेगी ।

कहते है की कलियुग की आयु ४, ३२, ००/- वर्ष है जिसमे से 

६,०००/- 
वर्ष बीत हो गये है । धीरे – धीरे धर्म का ह्रास होगा और इस युग 

का 
अन्त करने के लिये श्री हरी विष्णु का दसवा अवतार कल्की आयेगा ।

पर सन्तोष की बात यह है की लगभग ३,००,०००/-  वर्ष का समय 

फ़िर भी ठीक से व्यतीत होगा पर आखरी १,०८,००० वर्ष का समय 

बहुत कठिन होगा ।

उम्मीद का पथ –

नाम जप, सत्य का पथ तारण के मार्ग बनेगे । हरी किर्तन या अपने 

कुल देवता का नाम जप या फ़िर किसी भी देवता का नाम जप 

बचाव 

करेगा । धर्म, सत्य का पालन करने वाले का बचाव करेगा। नाम 

जप 

का महत्व बढ जायेगा और यही तारक बनेगा। जो मनुष्य नाम जप 

करेगे और सत्य का पालन करेगे उनकी व्यथा कम हो जायेगी और 

उनका कली काल से बचाव होगा । पर ऐसा बहुत कम मनुष्य कर 

पायेगे। क्योकी कली का वास स्वर्ण, द्युत (जुआ), मदीरा, और स्त्री 

मे होगा इसलिये बहुत कम मनुष्य इससे बच पायेगे।



कल्की अवतार –

श्री हरी का दशम अवतार कल्की कलियुग की सीमा पार होने पर 

दुष्टो का नाश करने के लिये प्रकट होगा। उनकी माता का नाम 

सुमती और पिता विष्णुयश होगे। उनका अश्व सफ़ेद वर्ण का होगा 

जो 

की देवदत्त कहलायेगा। जन्म स्थान का नाम सम्भल होगा। सुमन्त, 

प्राग्य और कवी मे वो  सबसे छोटे होगे। भगवान परशुराम स्व्यम 

उनके गुरू होगे। श्री कल्की की दो पत्नी होगी- पद्मा और रमा। उनके 

पुत्र होगे जय, विजय, मेघमाल और बलाहक । उनके हथियार 

नन्दक, 

दारुक, शान्ग और कुमौदिकी सदा उनके साथ रहेगे। उनका वाहन 

जयत्र और गारूडी है। श्री कल्की से दिव्य गन्ध उत्पन्न होगी।

कल्की गौर वर्ण के होगे पर क्रोध मे काले रग के हो जायेगे। वो 

पीले 

वर्ण के वस्त्र पहनेगे। व्यापक सन्घार होगा और फ़िर से सत्ययुग का 

प्रदापर्ण होगा।


माना जाता है की कल्की अपनी ३२ वर्ष की आयू के बाद ही सक्रिय होगे । उनकी बडी सेना होगी जिसमे हजारो ब्र्हामण योद्धा होगे। कल्की हमेशा उन ब्र्हमणो से घिरे रहेगे । ये सभी ब्र्हामण विचित्र अस्त्रो से सुज्जित होगे जो अस्त्र पहले नही देखे गये है । ये सेना इतनी शक्तिशाली होगी की सभी अधर्मियो और मल्लेच्छ का सामना कर सकेगी। ये सभी ब्र्हामण पवित्र और आध्यात्मिक होगे । कल्की चन्द्र वन्श मे जन्म लेगे और उनकी ये सेना चारो दिशाओ मे मार काट मचा देगी ।    

उत्तर दिशा, मध्य की जमीने, पर्वतो मे रहने वाले, पूर्व दिशा वाले, पश्चिम दिशा मे बसने वाले, दक्शिण, श्री लन्का, येशिया और यूरोप के पर्वतो मे बसने वाली गोरी जातिया (पह्लव), यादव, तुशार (तुर्की की जातिया), चीन, खश, शुलिक, नेपाल विर्शल सभी जगह ब्र्हामणो की ये सेना अधर्मियो का सर्वनाश कर देगी। 

महारज कल्की बहुत कम लोगो को जीवित रहने की इजाजत देगे। सभी अशुद्ध, जगली, पापी, मल्लेच्छ इस सेना के आगे टिक नही पायेगे । कल्की की आन्धी सब पापीयो को खत्म कर देगी और जिनको जीवित रहने की इजजात मिलेगी उनके साथ कल्की और ये सेना सत्ययुग मे प्रवेष करेगी ।



महाप्रलय -

ग्रन्थ कहते है की प्रलय से पहले सुर्य नारयण अपना विस्तार करेगे 

और क्रोध मे लाल वर्ण के हो जायेगे । वो धरती का जल पी लेगे । 

और सब ओर सूखा और अकाल की स्थिती हो जायेगी । तब कोई 

धर्म नही रहेगा और धरती के जीव सिर्फ़ जीवित रहने के लिये 

सन्घर्ष 

करेगे । हर तरफ़ भूख, बिमारी, सूखा युद्ध मारकाट इत्यादी होगी । 

कोई रिश्ता या दया नही रहेगी । जल सबसे बडी सम्पती बन जायेगी 

लोग उद्विग्न, शोभाहीन और पिशाच सदृश हो जायेगे

फ़िर सूर्य देव अपना विस्तार कर लेगे और धरती को निगल लेगे । 

यही बात हमारे वैग्यानिक भी कहते है । हमारा सुर्य अभी सफ़ेद वर्ण 

का है । उम्र के साथ वो लाल वर्ण का को जायेगा । जैसे जैसे किसी 

तारे की उम्र बढ्ती है वो मरने से पहले लाल वर्ण का हो हाता है 

फ़िर 
उसका आकार कई गुना बढ जाता है । पुर्ण विस्फ़ोट से पहले 

नजदीक 

के ग्रह उसमे समा जाते है । यही प्रलय है । यही अन्त है । पर यह 

प्रलय का अभी एक और चक्र के बाद आयेगी । यानी की कल्की 

अवतार ने सतयुग का शुभारम्भ करना है ।



------- आदेश आदेश ---

गुरू गोरक्षनाथ जी को आदेश