भारतीय विचार
वेशोभाषा सदाचार रक्षणींय इदं त्रयम् ।
अन्धानुकरणमन्येषाम कीर्तिकरमुच्यते ॥
अर्थ
हर हाल में स्वभाषा, राष्ट्रभाषा , और स्वसंस्कृति
का
रक्षण परम आवाश्यक है । दूसरे की संस्कृति का अंधानुकरण दुख,
क्लेश और आध्यात्मिक पतन लाता है । पूरी जाति को अपयश प्राप्त होता है । सिर्फ़
वैदिक संस्कृति ही सत्वगुण का आधार है । इसका त्याग रजोगुण
और तमोगुण को स्थापित करता है ।
इसके अलावा घर मे मांसाहार
करना, अतिथियों को बुला कर शराब पिलाना, मांस परोसना, देर रात ऊंचे स्वर मे पाश्चात्य
संगीत सुनना, तमोगुण को स्थापित करता है । घर से शुभ शक्तियां या देवता चले जाते है
तथा अनिष्ट शक्तियों का वास हो जाता है । यह सब अधार्मिक कर्म है ।
कुम्भीपाके च पच्यन्ते तां तां योनिमुपागताः ।
आक्रम्य मार्यमाणाश्च भ्राम्यन्ते वै पुनः पुनः ।
अर्थ
मांसाहारी जीव पुनः पुनः जन्म लेते है और अंत मे कुंभि पाक नर्क
में यातना भोगते है । हर जन्म में हत्या से मारे जाते है और अनेकों योनियों मे भटकते
रहते है ।
“हिन्दुदुष्टों
न भवति, नानार्यो न विदूषकः ।
सधर्मपालको विद्वान श्रोतधर्मपरायणः ॥
अर्थ
वेदों के अनुसार हिन्दु वह है जो दुर्जन नही है, नाही
अकुलीन (अनार्य) है और न ही निंदा मे लिप्त है। जो भी धर्मपालक , विद्वान, सत्य का
रक्षक और धर्मपरायण है वही हिन्दु है
राष्ट्रहित मे वैदिक संस्कृति
का रक्षण और प्रचार अतिआवश्यक है ।
शिवनाथ – आदेश आदेश
गुरू गोरक्षनाथ जी को आदेश