कर्म-काण्ड
साधना के कई पंथ है और उनमे कर्मकाण्ड का पथ सर्वाधिक लोकप्रिय है । आईये जानें की कर्मकाण्ड क्या है ।
देव पूजन मे भक्ती योग के अंतर्गत कर्मकाण्ड साधना है । इसमें हम शरीर के माध्यम से अपने ईष्ट को रिझाते है । ईश्वर से मिलन का प्रयास करते हैं । इसी कारण से रजस्वला स्त्री को कर्मकाण्ड में बैठना वर्जित है । स्त्री की इस अवस्था मे सतोगुण कम हो जाता है और रजोगुण बढ जाता है ।
इसी कारण से यदि घर में सूतक हो तो भी घर में कर्मकाण्ड नही करना चाहिये । किसी की मृत्यु के बाद तेरह
दिन तक प्रेत का वास घर में या आस पास ही रहता है और रजोगुण बढ जाता है । इसीलिय इन
दिनो में भी कर्मकाण्ड वर्जित है ।
भक्त को कर्मकाण्ड में अपने शरीर की स्वच्छता का अत्याधिक ध्यान रखना चाहिये। पहनने के लिये सात्विक वस्त्र (सूती या रेशमी) ही उचित है । सूर्योदय से पहले उठना, स्नान इत्यादी के बाद ही साफ़ तन, मन और वस्त्र के साथ पूजा में बैठना कर्मकाण्ड का नियम है ।
इसी तरह अपने पूजा घर की सफ़ाई का ध्यान रखना, शुभ महुर्त, दिवस और दिशा का ध्यान रखते हुये देव के समीप बैठना चाहिये । पंच प्रकार से या षोडस प्रकार से देव पूजन भी कर्मकाण्ड में ही आता है । पूजन मे मन एकाग्र करने से भक्त की कुंडलिने शक्ती जागृत होती है ।
साधना में गाय के घी का दीपक (सरसों का तेल , तिल का तेल इत्यादी) उपयोग होता है जो की सोम्य सा प्रकाश करे।
ध्यान रखने योग्य बातें –
दीपक की जोत सोम्य हो । बहुत तेज और बढी ना हो । जोत के साथ कोई सुंगधित धूप या अगरबत्ती या गुग्गल का उपयोग भी प्रचलन है । यह वातावरण देव तत्व को आकृष्ट करता है ।
पूजा घर में देव चित्र और मूर्ती जीर्ण और खण्डित ना हो । अगर ऐसा है तो ऐसी मूर्ती या चित्र स्वच्छ जल मे बहा देना चाहिये और पूजा घर में सदा ही पूर्ण मूर्ती या सुंदर देव चित्र ही रखने चाहिये।
देव को सदा ही पूर्ण पूष्प ही अर्पित करने चाहिये । पूजा करते समय पुष्पकी पंखुरियोंको तोड कर न चढाएं । पुष्प की सुगंध और रंग देव तत्व को आकृष्ट
करता है । पुष्प के आभाव में मन से (मानसिक) पुष्प भी अर्पित कर सकते है ।
प्लास्टिक के पुष्प, पत्ते , बिजली के छोटे बल्ब इत्यादी की सजावट सभी तमो गुण को आकृष्ट करते है और पूजा घर या अपने घर की सात्विकता
को नष्ट कर देते है । अतः पूजा घर में सदा ही ताजे पुष्प , पत्ते इत्यादी ही सजाने चाहिये
।
सभी देव चिन्न्ह और चित्र उस देव की ऊर्जा का अंश रखते है । इसिलिये घर मे उतने ही देव चित्र या चिन्न्ह रखने चाहिये जिनकी हम रोज़ पूजा कर सके । अगर पूजा नही तो रोज़ उन्हे धूप दीप दिखा सके।
भक्त को इस बात का ध्यान रखना चाहिये की सभी देव चित्र सिर्फ़ पूजा घर में ही हो ताकि यथासंभव उनकी सात्विकता का प्रायोजन हो सके । इन देव चित्रों या चिन्न्हों को बाहर ना फ़ैंके बल्की स्वच्छ जल मे बहा दें । यह गंदे माहोल मे ना आने पायें , ना ही इनका अपमान हो । अगर ऐसा होता है तो देव अंश चला जाता है और घर और इंसान की सात्विकता नष्ट हो जाती है । रजो गुण और तमो गुण भरपूर हो जाता है ।
सत्वगुण का अभाव ही नशे को , क्रोध को , पाप को और अन्य बुराईयों को जन्म देता है ।
आदेश आदेश --- शिवनाथ
आदेश आदेश
अलख निरंजन्
गुरू गोरक्षनाथ जी को आदेश