Friday, 11 December 2015

भारतीय विचार






भारतीय विचार

वेशोभाषा सदाचार रक्षणींय इदं त्रयम् ।
अन्धानुकरणमन्येषाम कीर्तिकरमुच्यते ॥

अर्थ 
हर हाल में स्वभाषा, राष्ट्रभाषा , और स्वसंस्कृति का रक्षण परम आवाश्यक है । दूसरे की संस्कृति का अंधानुकरण दुख, क्लेश और आध्यात्मिक पतन लाता है । पूरी जाति को अपयश प्राप्त होता है । सिर्फ़ वैदिक संस्कृति ही सत्वगुण का आधार है । इसका त्याग रजोगुण और तमोगुण को स्थापित करता है ।


इसके अलावा घर मे मांसाहार करना, अतिथियों को बुला कर शराब पिलाना, मांस परोसना, देर रात ऊंचे स्वर मे पाश्चात्य संगीत सुनना, तमोगुण को स्थापित करता है । घर से शुभ शक्तियां या देवता चले जाते है तथा अनिष्ट शक्तियों का वास हो जाता है । यह सब अधार्मिक कर्म है ।

कुम्भीपाके च पच्यन्ते तां तां योनिमुपागताः ।
आक्रम्य मार्यमाणाश्च भ्राम्यन्ते वै पुनः पुनः ।

अर्थ 

मांसाहारी जीव पुनः पुनः जन्म लेते है और अंत मे कुंभि पाक नर्क में यातना भोगते है । हर जन्म में हत्या से मारे जाते है और अनेकों योनियों मे भटकते रहते है ।

 “हिन्दुदुष्टों न भवति, नानार्यो न विदूषकः ।
सधर्मपालको विद्वान श्रोतधर्मपरायणः ॥  

अर्थ 

वेदों के अनुसार हिन्दु वह है जो दुर्जन नही है, नाही अकुलीन (अनार्य) है और न ही निंदा मे लिप्त है। जो भी धर्मपालक , विद्वान, सत्य का रक्षक और धर्मपरायण है वही हिन्दु है

राष्ट्रहित मे वैदिक संस्कृति का रक्षण और प्रचार अतिआवश्यक है ।



शिवनाथ – आदेश आदेश 
गुरू गोरक्षनाथ जी को आदेश

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