ब्र्हमाण्ड-शास्त्र
अति बलशाली देवराज इन्द्र में अनेकों गुण
है । पर देवराज की पदवी स्थाई नही है । सबसे बलशाली, विवेकी , निर्भीक देव ही इस पदवी
के लिये चुना जाता है ।
देवराज अत्यधिक चौकन्ने, बलशाली, नीतिवान, कुशल सेनाध्यक्ष
, न्याय नीति का जानकार, तिलस्मी , चतुर , और विवेकी देव ही बनते है । हर देवराज इन्द्र एक मनवन्त्र तक इस पदवी मे रहता
है ।
इसी तरह सभी देव एक निछ्चित समय तक अपनी पदवी में
रहते है । अग्नी देव, वायु- देव , देव गुरू, वेदव्यास , वरुण, सुर्य देव, इत्यादी सभी एक पदवी है जिनमें उचित देवता ही आसीन
होता है । उसका काल और शक्तियां लगभग एक मनवन्त्र तक रहती है और उसके बाद फ़िर से चुनाव
….. यही देव कानून है ।
जिस
प्रकार अगले मनवन्त्र मे असुर राज बली को देवरज इन्द्र की पदवी मिलना तय है और वेदव्यास
की पदवी अश्वथामा जी को । अश्वथामा को उससे अगले मन्वन्त्र मे सप्त्रिशियों मे एक बनना
तय है ।
हर देव पदवी की परिक्षा होती है और जो
उतीर्ण हो वो ही पदवी का हकदार होगा । यह परिक्षा हर पदवी के लिये होती है ।
यमराज, चित्रगुप्त , नक्षत्र , प्रजापति
, सभी ग्रहों के अधिपती (बुध, शनि, सोम, मंगल, धरा, इत्यादी) । उतीर्ण देव , उपदेव
, असुर , सिद्ध …. जो भी परिक्षा में सफ़ल हो उसे पदवी और उससे संबधित जिम्मेवारी दी
जाती है ।
ब्र्ह्माण्ड
सुचारु रूप से चले इसके लिये कुछ पद बनाये गये । अलग अलग लोक से पद भरे भी
गये ।
इन परिक्षाओं
मे देवता ,यक्ष, किन्नर, गन्धर्व, नारदा, शारदा, नाग ,
अघोरी , यक्षणियां, ऋषी पत्त्निया, अनंत सिद्ध, मुनी , साधू , संत , सन्यासी , बैरागी , मडी वेताल , शाकिनी , डाकिनी , डैन , चुडैल , फनिद्रा ,भूत ,प्रेतात्मा ,वीर ,प्रमथ , जिन्न - इत्यादी कई प्रजातियां भाग लेती है ।
उधारण के लिये समस्त
देवो में श्री गणेश ने प्रतियोगिता जीत कर प्रथम पूज्य और गणाघ्य्क्ष के पद के
लिये चुने गये ।
परम ज्ञानी देवता और सुर्य पुत्र “यम” मृत्यु के अधिपती बने और साथ मे दक्षिण दिशा के दिकपाल का पदभार भी संभाला ।
कई देवियां नदियों की अधिपती बनी और कई देव ग्रहो और
पर्वतों के अधिपती बने ।
नक्षत्रों ने राहु- केतु को भाग्य फ़ल का भार दिया और
शिव पुत्र श्री कार्तिकय अपने विषेश गुणों के कारण नक्षत्रों के अधिपती बने और
अपनी वीरता के कारण देव-सेनापती का पदभार भी संभाला ।
इसके अलावा कितने ही पिशाच , प्रेत, डाकिनि, शाकिनि ,
शक्तियां , चुडैल , फनिद्रा ,भूत इत्यादी अस्त्रों – शस्त्रों , वज्र , चक्र , बाण ,
त्रिशूल , गदा , पाश इत्यादी के अधिपती बने । अस्त्र मे इनका आवाहन करने मे ये
शक्तियां उस अस्त्र मे खुद विराजमान होती है और आवाहान करने वाले का कार्य सिद्ध
करती है ।
जैसे सिद्ध
रावण को मारने के लिये श्री राम ने देवि तारा का आवाहन करा था । देवि तारा श्री
राम के बाण मे विराजमान हो गयी थी और रावन का वध बाण ने नही देवी तारा ने करा था ।
यह अस्त्र दिव्य अस्त्र की श्रेणी मे आते है और साधक
को इन्हे पाने के लिये खास साधना करनी पडती है । इसके अलावा कुछ अस्त्र प्रदान भी
करे जाते है योग्यता के अनुसार ।
श्री हरी विष्णु के साथ नौ नाथ , नौ नाग और चौरासी
सिद्ध ब्र्हमाण्ड का कार्य भार संभालते है ।
यह सभी पदाधिकारियों के कार्य क्षेत्र में चौदह लोकों के अलावा भुमण्डल का भी भार आता है
।
यह दण्ड/ पुरस्कार अपने कार्यक्षेत्र में देते है जैसे की पहले से ही लिखे गये है ।
यह ब्र्हमाण्ड के नियम है और इनमे कर्म का बहुत ही महत्व है ।
इस प्रकार हमारा यह ब्र्हमाण्ड सुचारु रूप से चलता है
। यही लोकपाल – दिकपाल ,देव, क्षेत्रपाल , इत्यादी हमारे पूज्य है और मानव इन्ही
की पूजा करते है ।
यह सभी शक्तियां पूर्ण रूप से जाग्रत रहती है और अपने
कार्यक्षेत्र में सावधानी से अपना कार्य करतीं है । इन्हे प्राप्त विषेश शक्तियां
इन्हे अपने कार्य करने मे मदद करती है । हर पद के लिये पदाधिकारी को विषेश अस्त्र
और शक्ती प्रदान करी जाती है ।
उध्हारण के लिये श्री हरी विष्णु जी को कुमुद गदा,
सारंग धनुष तथा सुदर्शन चक्र प्रदान करा गया । यह सभी अस्त्र पूरी तरह से जाग्रत
है और अपने स्वामी का हर आदेश मानने को तत्पर भी ।
यह हमारे ब्र्ह्माण्ड की कार्य शैली है । इस प्रकार से
सब सुचारू रूप से चलता है । बिना किसी रुकावट के ।
आदेश आदेश सदगुरू श्री योदी योगेन्द्रनाथ जी को आदेश
गुरू गोरक्षनाथ जी को आदेश
No comments:
Post a Comment