Sunday, 9 August 2015

ब्र्हमाण्ड के रहस्य - हिन्दु धर्म के अनुसार





ब्र्हमाण्ड के रहस्य - हिन्दु धर्म के अनुसार

हिन्दू पुराणो मे ब्र्ह्माण्ड को तीन भाग मे विभाजित किया है:-

उर्ध्व लोक
महा लोक, जन लोक, तप लोक, सत्य लोक
 देव, सिद्ध, किन्नर, गन्धर्व इत्यादी
मध्य लोक
भू लोक भुर्व लोक, स्वर्ग तथा पताल लोक, वितल लोक, सुतल
लोक
जानवरो, मनुष्यों इत्यादी अल्प उमर वाले
अधो लोक
रसातल लोक, सुतल लोक, वितल लोक, अतल लोक 
नाग, राक्षस, पिशाच, इत्यादी

त्रिलोकी
भू लोक , भूर्व लोक , स्वर्ग लोक
पताल लोक, महाताल लोक, तलातल लोक
काम (वासना) ही गती देने वाली शक्ती है कर्म ही फ़ल है। जन्म और पुनर्जन्म यहां की विषेशता है।

भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो : प्रचोदयात्
भू भू लोक , भुर्वभुर्व लोक, स्वस्वर्ग लोक, सवितासूर्य (यह सभी लोक सूर्य के अधीन है)

ब्र्हमा की हर रात त्रिलोकी का अन्त कर देती है । इस समय इन लोकों की
शक्तियां और ऊर्जांये उध्र्व लोक मे स्थान ले लेती है । ब्र्हमा जी की हर सुबह
त्रिलोकी का फ़िर जन्म होता है । महा लोक (और रसातल लोक) त्रिलोकी और
उध्र्व लोक (और अधो लोक) के बीच मे सीमा का काम करती है ।  

रुचिकर और जानने के योग्य बात है की समस्त भुमण्डल और त्रिलोकी मे बोली जानी वाली भाषा संस्कृत है। और यही भाषा जम्बू द्विप की पुरातन और विद्वानों की भाषा बनी । आज यह भाषा बहुत सिमित क्षेत्र की भाषा बन कर रह गयी है ।

यहां हम भु मण्डल के बारे मे संक्षिप्त रूप मे जानने का प्रयास करेंगे।

मध्य लोक विषेशकर सात महा द्वीपों का समूह है जिसे भुमण्डल भी कहते है । यह सात द्वीप इस प्रकार से है

जम्बू द्वीप
पलाक्ष द्वीप
समाली द्वीप
कुश द्वीप
क्रोन्च द्वीप
शाक द्वीप
पुश्कर द्वीप




एक द्वीप से दूसरे द्वीप मे जाना आसान नही है ।
 किसी यान से अथवा किसी और सांसारिक साधान से तो बिल्कुल नही।
 उध्र्व लोक के निवासी (सिद्ध इत्यादी) जा सकते है या फ़िर अपने
 कर्म और पवित्रता से ही जाया जा सकता है । क्योंकी हर द्वीप की 
जीवन उर्जा भिन्न है इसलिय इन्हे साधारणतया देखा भी नही जा सकता।

श्रीमदभगवद गीता में कहा है भुमण्डल अपने सात द्वीपों के साथ कमल के पुष्प की तरह नजर आता है जिसमे जम्बू द्वीप बिलकुल गोल है और उस कमल पुष्प के मध्य मे है ।

जम्बू द्विप


इन सात द्वीप में जम्बू द्वीप मध्य मे है और बहुत ही विषयी और भौतिकवादी है ।
 सबसे दूरी मे पुष्कर द्वीप है । सात द्वीपों के बीच मे सात समन्दर है। 
यह समन्दर इन द्वीपो को अलग करते है और जिस द्वीप को बनाते है उसी 
के चरित्र को अपनाते है। 
नमक विषय और भौतिकवाद का प्रतीक है इसलिय जम्बू द्वीप को सब 
ओर से नमक के समुन्दर ने चारों ओर से घेर रखा है । 

जम्बू द्वीप में विषय को नियण्त्रण करना आवश्यक हो गया ताकि धरती की सख्त सतह वहां के निवासियो के दिल भोगवादी ना बना दे, और धर्म धरती मे स्थिर रहे, श्री हरी विष्णु ने रिशभ अवतार लिया । श्री हरी विष्णु के इस अवतार ने धरती मे धर्म को स्थिर करा और जीवात्मा के विस्तार के लिये बनाया ।रिशभ की सन्ताने धरती के देश बने।

विष्णु पुराण मे जम्बू द्वीप को कर्म भुमी माना गया है । यहा नये कर्म का उदय होता है और यही कर्म जीव का भविष्य बनाते है की उसे ब्र्हमाण्ड के किस सतह मे जन्म लेना है । उसे उध्र्व लोक मे जाना है या फ़िर अधो लोक में।

मेरू पर्वत को घेरे हुये जम्बू द्वीप नौ वर्ष और अष्ट पर्वतो से युक्त एक लाख योजन चौडाई मे नमक के समुन्द्र से घिरा द्वीप है।  

नौ वर्ष

 भारतवर्ष, केतुमालवर्ष, हरिवर्ष, इलावृतवर्ष , कुरूवर्ष, ह्रिनायकावर्ष, रामयकवर्ष , किमपुरूषवर्ष और भद्राश्ववर्ष  

आज के सन्द्र्भ मे देखें तो उत्तर ध्रुव ईलाव्रित वर्ष का स्थान है । 
इसके पश्चिम में केतुमालवर्ष वर्ष है जिसका अधिकांश भाग इस 
समय अटलांटिक महासागर के गर्भ में समा गया है ।
 इलावृतवर्ष के पूर्व मे भद्राश्ववर्ष का स्थान है जो आज पूर्णतय 
प्रशांत महासागर के गर्भ मे समा गया है । इलावृतवर्ष के एक तरफ़
 हरिवर्ष, किमपुरूषवर्ष और भारत वर्ष स्थित है तथा दूसरी तरफ़ 
रामयकवर्ष, हिरनयक वर्ष और कुरु वर्ष है । 
इस प्रकार कुरु वर्ष भारत वर्ष के विपरीत दिशा मे स्थित है । 
 
भारत वर्ष आज के मिस्र , अफ़गानिस्तान , बलुचिस्तान , ईरान ,
 सुमेरिया से लेकर कैस्पियन सागर (पुरातन नाम कश्यप समुद्र ) तक फ़ैला था। 
भारत वर्ष मे भारत खण्ड, हिमालय पर्वत से कन्या कुमारी तक का भुभाग था। 

( जम्बू द्विपे ,भारत वर्षे, भारत खण्डे – संकल्प मे आज भी कहा जाता है ) 

यह सिद्धांत की आर्य भारत खण्ड मे कही से आये – एक मिथ्या सिद्धांत है। 
उच्च कुल मे जन्म लेने वाला हर व्यक्ती आर्य कहलाया जाता था । 
आर्य का मतलब “कुलीन” है ।  
 
महाराज सगर के ६०,००० पुत्रों नें अश्वमेघ के अश्व को खोजने में पृथ्वी को खोदने से
जम्बूद्वीप में आठ उपद्वीप बन गये थे जिनके नाम हैं:-

स्वर्णप्रस्थ
चन्द्रशुक्ल
आवर्तन
रमणक
मनदहरिण
सिंहल
लंका

पुरातन समय मे अरब सागर का कोई अस्तित्व नही था। 
महा सरस्वती नदी जिसका जन्म हिमालय की गोद से हुआ, 
वह लगभग ४५०० कि० मी ० का सफ़र तय कर के अफ़्रिका से होती हुई
 सागर मे विलीन होती थी। 
पुरातन समय की सबसे लम्बी नदी होने का गर्व सरस्वती नदी को प्राप्त था। 
जमुना और गंगा का आज भी अस्तित्व है जबकी महा सरस्वती नदी 
द्वापर युग के साथ विलुप्त हो गयी । 




जाति विभाजन 


ब्र्हामण
क्षेत्रिय
वैश्य
शूद्र


युग का वास 

सतयुग 
त्रेतायुग 
द्वापरयुग
कलियुग
 

प्लाक्ष द्वीप 

जम्बू द्वीप के तुरन्त बाद प्लाक्ष द्वीप आता है । 
यह जम्बू द्वीप से दोगुना विस्तार मे है, और गन्ने के रस का समुद्र 
प्लाक्ष को घेरे हुए है । 
प्लाक्ष द्वीप का नाम वहां पर उगने वाले सुनहरे प्लाक्ष (पीपल) के वृक्ष' पर है।
 इस सुनहरे प्लक्ष वृक्ष की जड में सात जिव्हा वाली अग्नि वास करती है। 
यहा पर निवासियों की ना तो वृद्धि ना ही ह्रास होता है। 

युग का वास 
त्रेतायुग 
 
यहां सदा त्रेतायुग समान रहता है। 

सात वर्ष 


शिव  
व्यास 
सुभद्र 
शान्तहय 
क्षेमक 
अम्रित 
अभय 


सात पर्वत 

मनिकुट 
वज्रकुट 
इन्द्रासन 
ज्योतिषमत 
सुबरन 
ह्रिनयस्थिव 
मेघमाला 

सात नदियां 

अनुतप्ता
निर्मन 
अन्गिरसी
सावित्री
सुकृता
रितम्भरा
सत्यम्भरा
 
इनके अलावा सहस्रों छोटे छोटे पर्वत और नदियां हैं।

जाती विभाजन

आर्यकर
कुरूर
विदिश्य
भावी

पलाक्ष द्वीप मे इन्सानों की उम्र १००० वर्ष निर्धारित है । जन मानस सूर्य देव का उपासक है । सभी जन्म के साथ ताकत, सौन्द्र्य, बुद्धी, वीरता और इन्द्रियां पाते है ना की कर्म की वजह से ।

 यहां पर लोगों के नयन नक्ष देवताओं से मिलते है इसलिये सभी देवताओं की ही तरह वेष भूषा धारण करते है। शोभाचार मे देवों की नकल करते है । 


यहा बहने वाली सातो नदियां का जल बहुत ही पवित्र है जिसमे स्नान कर के प्लाक्ष की चार जातिया अपने पापों को धोति है । जब नागरिकों का मन सान्सारिक बन्धनो से दूषित होता है तो इन नदियों के जल का स्नान या सिर्फ़ स्पर्ष उन्हे पवित्र कर देता है । सभी नागरिक और उनके बच्चे देवताओं की तरह ही खूबसुरत और स्वसथ्य रहते है । श्री हरी विष्णु की अरधाना और वेदों के नियम से सभी अपने जीवन को जीते है ।
प्लाक्ष द्वीप में वातावरण जम्बू द्वीप के मुकाबले ज्यादा गर्म है। सूर्य यहां से नजदीक ही दिखता है ।
प्लाक्ष द्वीप मे गन्ने के रस (इक्षुरस) का समुद्र गहरे रंग का है और उसका मीठा स्वाद बृहस्पति की वजह से है जो की (बृहस्पति) प्लाक्ष के समीप है और साफ़ नजर आता है ।
शाल्मल द्वीप

प्लाक्ष द्वीप से दो गुना बडा समाली द्वीप है। सीमल के पौधे पर इस द्वीप का नाम पडा है । द्वीप के बीचों बीच  यह सीमल का पेड बहुत ही विशाल है । विद्वान कहते है की यही विशाल व्रिक्ष पक्षी राज गरुड का निवास स्थान है । 

यह द्वीप सोम रस (मदीरा या सुरा या शराब) के समुद्र से घिरा है । इस प्रकार इस समुद्र की गति और व्य्वहार बाकी समुद्र से भिन्न है । समाली चन्द्र के समीप है और चन्द्र की गती से प्रभावित भी । 

सात वर्ष


श्वेत
हरित
जीमूत
रोहित
वैदयुत
मानस
सुप्रभ


सात पर्वत

कुमुद
उन्नत
बलाहक
द्रोणाचल
कंक
महिष
ककुद्मान


सात नदियां


योनि
तोया
वितृष्णा
चंद्रा
विमुक्ता
विमोचनी
निवृत्ति

जाति विभाजन


श्रुतिधर
विर्यधर
वसुन्धर
इशुन्धर


मुख्य देव – चन्द्र (सोम)
यहां समय की गणना चन्द्र की गति से होती है । इस द्विप में भी सदा त्रेता युग ही रहता है । यहां पैदा होने वाले सभी जीव अपनी जाति और जन्म से ही अपने गुण पाते है । यह द्विप कई ऋषि-मुनियों का निवास भी है ।
कुश द्वीप

समाली द्वीप से दोगुने बडे कुश द्वीप का नाम वंहा उगने वाली कुश से पडा है ।
कुश का अति विशाल झाड़ है  कहते है की इस कुश घास को स्वयं देवताओं ने बनाया। यह द्वीप सूर्य के नजदीक होने के कारण गर्म है। द्वीप मे उगने वाली कुश हमेशा हे अग्नी से प्रज्वलित रहती है। देखने मे प्रतीत होता है की कुश की कलियां अग्नी की लघु जोत से प्रज्वलित है और उसकी चमक हर दिशा में व्यापत है। द्वीप हर तरफ़ से विशाल घ्रित (घी) के समुद्र से घिरा है । अत्यधिक गर्मे के कारण यह घी (घ्रित) हमेशा ही जल के समान तरल अवस्था मे रहता है। 

सात वर्ष


वसु
वसुदन
दीर्धरुची
नाभिगुप्त
सत्यव्रत
प्रभाकर
कपिल


सात पर्वत


विद्रुम
हैमशौल
द्युतिमान
पुष्पवान
कुशेशय
हरि
मन्दराचंल


सात नदियां

रासकुल
मधुकुल
मित्रविन्द
स्रुतविन्द
देवगर्भ
घुटच्यंत
मन्त्रमाल

जाति विभाजन


दमी
शुष्मी
स्नेह
मन्देह


यह निवासी इन पवित्र नदिंयो मे स्नान करके अपने को पवित्र रखते है । इन्हि नदिंयो का पवित्र जल वैदिक रितियों मे करते है । सभी द्वीपों मे श्री हरी विष्णु विर्विवाद रूप मे पूजे जाते है ।
मुख्य देव अग्नी है ।


क्रौंच द्वीप
यह द्वीप समाली द्वीप से दो गुना बडा है और इसका नाम द्वीप मे रहने वाले क्रौंच पर्वत पर पडा है ।
 कहते है की शिव पुत्र कार्तिकय ने क्रोधित होकर क्रौंच पर्वत को एक युद्ध मे बहुत घायल कर दिया था पर वरुण देव ने क्रौन्च पर्वत को बचा लिया ।



जब श्री हरी विष्णु ने वाराह अवतार मे समस्त भुमण्डल उठा लिया था और जल मग्न होने से बचा लिया था तो उनके दांत का निशान आज भी क्रौंच द्वीप मे नजर आता है । 

यह द्वीप समस्त ओर से दूध के सागर से घिरा है । यह सागर समाली द्वीप के घ्रित के सागर से दोगुना बडा है । यह दुग्ध सागर बहुत ही मनमोहक है । क्रौंच पर्वत दूर से ही देखा जा सकता है । यह क्रौंच पर्वत अमुल्य सम्पदा से भरा पडा है । कई तरह के जवाराहत यंहा मिलते है। यह द्वीप सूर्य के समीप है और सदा ही जल से सींचा रहता है । यही जल जो सूर्य हर द्वीप से लेते है और यही जल सूर्य का आहार है और क्रौंच द्वीप पर वाष्प बन कर रहता है और फ़िर जल बन कर इस द्वीप को सींचता है । 

सात वर्ष


आत्मा
मधुरुह
मेघपरिष्थ
सुधांमा
भ्रजिश्ठ
लोहितरन
वनस्पती

सात पर्वत

शुक्ला
वर्धमान
भोजन
उपवराह
नन्द
नन्दन
सर्वतो-भद्र


सात नदिंया

गौरी
कुमुद्वती
सन्ध्या
रात्री
मनिजवा
क्षांति
पुण्डरीका


जाति विभाजन


पुरुष
रिशभ
द्रविण
देवक


 पुरातन समय में जब दुर्वासा के श्राप के कारण देवता असुरों से पराजित होने लगे, तब श्री हरी विष्णु ने उन्हे सागर मथने की सलाह दी जिससे अम्रित मिले और देवता अमर हो जायें । सागर मंथन की रोचक कथा पुराणो में आती है । यह सागर मंथन क्रोंच द्विप के दूध के सागर मे ही हुआ था। मंदार पर्वत मथनी बना, दुग्ध का सागर मथा गया, जिससे कई अमलुय वस्तुएं संसार को मिली । उसी दूध के सागर से हलाहल विष निकला जिसे महादेव जी ने ग्रहण कर लिया।


मुख्य देव:- वरुण देव
सभी जतियों के लोग इन पवित्र नदियों के जल से वैदिक रीती से देव स्तुती करते है और अपने को पवित्र करते है ।

शाक द्वीप
शाक द्वीप का नाम द्वीप मे शाक व्रिक्ष के नाम में है ।
 सुगन्धित शाक व्रिक्ष इस द्वीप मे हर ओर होता है ।
 शाक द्वीप हर ओर से छासः (मठ्ठा) के समुद्र से घिरा है । 
यह छास (मठ्ठे, लस्सी – butter milk) का सागर सूर्य की शक्तिशाली किरणों 
को प्रतिबिंबित करता है और द्वीप का तापमान सयंमित करता है । 
यंहा के निवासी सूर्य के वेग को महसूस कर सकते है । 
सूर्य की असिमित शक्ति इस द्वीप मे महसूस होती है । 

 शाकद्वीप के ब्राहमणओं की एक कथा भविष्यपुराण में आती है जो की महाभारत से सम्बंधित है । श्री क्रिष्ण के पुत्र को जब कुष्ठ रोगी होने का श्राप मिला तो श्री हरी क्रिष्ण शाकद्वीप गये और वहां के अठ्ठाराह सूर्यांश ब्र्हामणों को सपरिवार जम्बूद्वीप के भारतखण्ड में अपने राज्य द्वारिका ले आये । इन शाकद्वीपय ब्र्हामणों ने सांब की चकित्सा करी ।   तत्पश्चात यह सभी मगध (बिहार) आ कर बस गये । ये सभी संस्कृत के प्रकाण्ड ज्ञानी थे तथा चिकित्सक भी थे। आज भी इनके वंशज जम्बूद्वीप में बसते है ।

सात वर्ष


जलद
कुमार
सुकुमार
मरीचक
कुसुमोद
मौदाकि
महाद्रुम


सात पर्वत

उदयाचल
जलाधार
रैवतक
श्याम
अस्ताचल
आम्बिकेय
अतिसुरम्य गिरिराज केसरी

सात नदियां


सुमुमरी
कुमारी
नलिनी
धेनुका
इक्षु
वेणुका
गभस्ती


जाति विभाजन


रित्रव्रत
सत्यव्रत
दानव्रत
अनुव्रत


सभी जातियां प्राणायाम , योग आसन और ध्यान से अपने ईष्ट की अराधाना करते है ईष्ट वायू देव है

पुष्करद्वीप


सातंवा द्वीप ही पुष्कर द्वीप है । एक सुनहरी विशाल कमल इस द्वीप मे है जिसमें ऐसा विश्वास है की वह ब्र्हमाजी का आसन है । इस कमल मे एक हजार करोड पंखुडिया है जो की बहुत ही खूबसूरती से एक दूसरे के ऊपर स्थित है और अग्नि के समान देदिप्त्यमान रहती है।  इसी कमल के कारण इस द्वीप का नाम पुषकर है। ब्र्हमाण्ड के विशालतम कमल के पुष्प का आरंभ पुष्कर द्वीप से होता है। इस द्वीप मे हमेशा ही कमल के पुष्प खिलते रहते है और सदा बसंत रहता है । सातों द्वीप ही कमल की पखुंडी की तरह ही लगते है । सारा भुमण्डल ही ब्र्हमा जी का आसन है पर ब्रह्मपुरी सुमेरू पर्वत पर स्थित है । ब्र्ह्माजी ही त्रिलोकी के सर्व शक्तिशाली जीवित शक्सियत है इसीलिय वह भगवान भी कहे जाते है ।  देवता भुमण्डल के ऊपर स्वर्ग लोक में रहते है । पुष्कर द्वीप के बीचों-बीच मानसोत्तर नामक पर्वत है । बहुत से देवता इसी पर्वत में भी रहते है तथा अन्य सुमेरू पर्वत में भी रहते है ।

पुष्करद्वीप में एक अति महान न्यग्रोध (वट) वृक्ष है, तथा यह द्वीप शाकद्वीप से आकार में दोगुना है और शुद्ध मीठे (पीने योग्य सादा जल) जल के सागर से घिरा है पर्वत के ऊपर से अपनी कक्षा में परिक्रमा करता है जिसे सम्वत्सर कहते है । सूर्य के । सूर्य मेरू उत्तरिय पथ को उत्त्रायण तथा दक्षिणिय पथ दक्षिणायारण कहलाता है । इसी का एक भाग देवों की दिन तथा एक भाग देवों की रात है ।
पुष्करद्वीप के बीचों-बीच मानसोत्तर नामक अत्यंत विशाल पर्वत स्थित है जो की पुष्करद्वीप को दो वर्षो मे विभक्त करता है ।

वर्ष

रामनक खण्ड
धातकि खण्ड

जाति विभाजन

वंग
मागध
मानस
मंगद
इस द्वीप मे कोई छोटी नदी या पर्वत नही है ।

ब्र्हमाजी ही कर्म माया है और सदा ही परमब्रह्म से जुडे है । परम परमेश्वर मे सदा लीन होने के कारण ब्र्हमाजी पूजनीय है तथा वैदिक ग्यान के सूत्रधार भी है । पारंपरिक वैदिक रीति से पूजन और यग्य करके यहां के निवासी ब्र्हमाजी का पूजन करते है और पवित्र रहते है ।

पुष्कर द्वीप में सदा ही सतयुग रहता है ।



आदेश आदेश अलख निरंजन 
गुरू गोरक्षनाथ जी को आदेश

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