Monday, 28 January 2019

कर्मयोग







कर्मयोग
जब भी हम कर्मयोग की बात करते है तो हम कर्म योग को किसी भिखारी को भीख देना, कोई विद्यालय खोलना , या किसी सेवा संस्था से जुडना ही समझते है ।
पर ये सभी कर्म या हम अपनी भावनाओं की सन्तुष्टी के लिये करते है या फ़िर लोगो की नज़र मे अच्छा बनने के लिये या आकर्षण का केन्द्र बनने के लिये ही करते है । ये सब कर्म योग में नही आते ।

तो फ़िर कर्म योग क्या है ।

कर्मयोग या कर्म का मार्ग (वो कर्म जो हमारी किस्मत बनाये) और वो मार्ग जो हमारी आध्यात्मिका बढाये और ईश्वर के नजदीक ले जाये।अगर हमारे कर्म संसारिक भी है तो भी हमारे अंतरमन मे अपनी छाप छोढे और पुराने बुरे कर्मो का स्थान ले लें । हमे मोह और अनाव्श्यक बंधनों से मुक्त करें यही कर्म योग का उद्देश्य है ।

वात्स्ययान के अनुसार धर्म और अधर्म के बीच अन्तर है और यही धर्म कर्म योग है ।
धर्म किसी भी इन्सान की सोच और कर्म का मिश्रण है । धर्म सिर्फ़ यह नही की किसने क्या कर्म करा बल्कि उसके विचार, है और  वो क्या लिखता है और क्या बोलता है का सम्पुट है ।

अधर्म शरीर का
हिंसा , चोरी  और अपने साथी के अलवा किसी और से शारिरक संबन्ध बना ना
धर्म शरीर का
दान , मुश्किल समय पर किसी की सहायता करना , और सेवा करना ।

अधर्म वाणी और लेखन से
झूठा वचन बोलना , कर्कष वाणी (जिससे सुनने वाला आहत हो) , झूठा आरोप लगाना  और बेतुकी बात करना ।
धर्म वाणी और लेखन से –
सच (सत्य) बोलना , हित के वचन बोलना , प्रिय वचन बोलन और धर्म ग्रंथो के शब्दों को बोलना ।
मन के अधर्म
किसी का बुरा चाहना , ईश्वर की सत्ता को ना मानना , नास्तिक विचारधारा रखना और लालच करना ।
मन के धर्म
दया रखना , दूसरों मे शरद्धा रखना और निष्पक्षता रखना
आदेश आदेश Adesh



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