Saturday, 3 February 2018

विष्णु रहस्य और आदी शिव









विष्णु रहस्य और आदी शिव



शुरूआत में कुछ भी नही था ……. ना कोई रौशनी ना ही अन्धकार ….. ना ब्र्हमाण्ड सिर्फ़ खाली जगह । वहां पर विचरती थी शुद्ध आत्मा …..प्रकाशवान, निराकार, परमब्र्हम आदी शिव या सदा शिव और उनकी कुण्डिलिणि शक्ति महा माया।

महा माया के विचरने से अनेकों ब्र्हमाण्ड रचित हो गये । यह सब खाली जगह ही थी पर अलग-अलग। 


ऐसे ही विचरते उनके मन मे विचार आया एक से अनेक होने का …….. और उनके वाम (बायें) भाग से प्रकट हुई एक और शक्ति ।
 यह शक्ति आदि शिव के समान ही थी, निराकार ।

वह शक्ति बहुत नम्रता से आदी शिव और महा माया के सामने झुकी और बोली … “ हे नाथ मैं कौन हूं मेरा क्या नाम है और मुझे क्या करना है ।

सदा-शिव और महा माया ने अपने उस पुत्र का नाम विष्णु रखा और उसे तपस्या करने को कहा ।

श्री विष्णु अगले 1000 देव वर्ष  तक तपस्या में लीन रहे और फ़िर उनके दिव्य शरीर से जल निकलना शुरू हुआ । उस जल ने समस्त ब्र्हमाण्ड को भर दिया ।

तब यह शक्ति (विष्णु) तीन भागों मे विभाजित हो गयी ।
१.  कारणोंदकशायी विष्णु या महा विष्णु 
२.  गर्भोदकशायी विष्णु
३.  क्षीरोदकशायी विष्णु
महा विष्णु (कारणोंदकशायी विष्णु)
  निराकार जो करणोंदक पर विराजमान है । यही संसार का बीज डालते है । अग्नी, आकाश, जल, धरती और इसके अलावा मन, समझ, अहंकार इत्यादी । यही सब कारणों का कारण है । महामाया द्वारा रचित समस्त ब्र्हमाण्डो की आत्मा के रूप मे यह एक हजार नेत्र और एक हजार भुजाओं के साथ चरित्र होते है ।


गर्भोदकशायी विष्णु
महा विष्णु (कारणोंदकशायी विष्णु ) उन सभी महा माया द्वारा रचित ब्र्हमाण्डों मे गर्भोदकशायी विष्णु के रूप मे प्रवेष करते हैं । हर एक ब्र्हमाण्ड मे एक गर्भोदकशायी विष्णु यह गर्भोदकशायी विष्णु अलग-अलग महा माया द्वारा रचित ब्र्हमाण्डों की आत्माओं की आत्मा है । इन्ही की नाभी से ब्र्ह्मा जी की उत्पती होती है ।

क्षीरोदकशायी विष्णु
गर्भोदक्सयि विष्णु हर ब्र्हमाण्ड में जीवित शरीरों मे क्षीरोदकशायी विष्णु के रूप में बसते है । जब हम कहते है की कण कण, हर शरीर मे भगवान है तो हम क्षीरोदकशायी विष्णु की बात करते है ।
श्री हरी विष्णु, जिनके पास देवता मदद मांगने जाते है या जिन्हे हम परमात्मा कहते है वह क्षीरोदकशायी विष्णु  ही है । 
  
सर्वाणि तत्र भूतानि वसन्‍ति परमात्‍मनि 
भूतेषु   सर्वात्‍मा वासुदेवस्‍तत: स्‍मृत: ।।


पुराने ग्रन्थों के अनुसार नारायण आदी शिव का ही रूप है । शिव ही नारायण है और शिव की शक्ति महा माया ही नारायणी है । शिव की कुण्डिलिणि शक्ति ही महा माया या नारायणी के नाम से जानी जाती है । वही अलग अलग रूप मे विश्व में विचरती है और उसे स्पन्दन प्रदान करती है । यह अनन्त शक्ति (आदी शिव) जब अकेली है तो योगी (शिव) के रूप में है जब पालन करती है तो राजा (विष्णु) के रूप मे है ।


यही शक्ति अलग अलग कारण से अलग अलग रूप में प्रकट होती रहती है और समस्त ब्र्हमाण्ड का पालन करती है ।यह दिव्य शक्ति हर वक्त समस्त चर-अचर ब्र्हमाण्ड को बांधे रखती है और उसका संचालन करती है । इसी शिव शक्ति को ध्यान के समय में योगी ग्रहण करता है ।


नव नारायाण और नव नाथ
नव नारायण उन नौ नागों को शक्ति देतें है जो इस सकल ब्र्हमाण्ड मे आध्यात्मिक कुण्लिणी शक्ति के रूप में विराजमान है । इसे ही हम विश्व कुण्डिलिनि कहते है । इनके सकल अवतार इस प्रकार से है ।

नव नाथ
किसका अवतार
नव नाथ
किस का अवतार
मत्स्येन्द्र नाथ
कवि नारायण
गोपिचन्द्र नाथ
द्रुमिल नारायण
जलंधर नाथ
अन्तरिक्ष नारायण   
कनिफ़ नाथ
प्रबुद्ध नारायण  
चर्पट नाथ
पिप्प्लायन नारायण  
नाग नाथ
अविर्होत्र नारायण  
भर्त्रुहरि नाथ
हरी नारायण
रेवा नाथ
चमस नारायण  
गहिनि नाथ
करभज नारायण



आदिनाथ शिव और गोरक्षनाथ इस सूची में नही है । आदिनाथ शिव ज्योती स्वरूप के अवतार ही है । यही ओमंकार स्वरूप है । यानी परमब्र्हम शुद्ध आत्मा , निराकार और प्रकाशवान । जिनकी कुण्डिलिनी शक्ति आदि शक्ति महा माया है । गुरु गोरक्षनाथ जी शिव स्वरूप यानी आदि शिव ही है । या हम कह सकते है की शिव और गोरक्षनाथ एक ही है ।


जिस प्रकार सप्तरिशि , ६ मनु , इन्द्र इत्यादी हर मन्वन्त्र मे बदलते रहते है उसी प्रकार नव नाथ भी । पर आदि नाथ शिव और गुरू गोरक्षनाथ नही बदलते ।
आदेश आदेश
गुरू गोरक्षनाथ जी को आदेश
ओम शिव गोरक्ष



No comments:

Post a Comment