विष्णु रहस्य और आदी
शिव
शुरूआत में कुछ भी नही था ……. ना कोई रौशनी ना ही अन्धकार ….. ना ब्र्हमाण्ड सिर्फ़
खाली जगह । वहां पर विचरती थी शुद्ध आत्मा …..प्रकाशवान,
निराकार, परमब्र्हम आदी शिव या सदा शिव और
उनकी कुण्डिलिणि शक्ति महा माया।
महा माया के विचरने से अनेकों ब्र्हमाण्ड रचित हो गये । यह सब
खाली जगह ही थी पर अलग-अलग।
ऐसे ही विचरते उनके मन मे
विचार आया एक से अनेक होने का …….. और उनके वाम (बायें) भाग से प्रकट हुई एक और शक्ति ।
यह
शक्ति आदि शिव के समान ही थी, निराकार ।
वह शक्ति बहुत नम्रता
से आदी शिव और महा माया के सामने झुकी और बोली … “ हे नाथ मैं कौन हूं मेरा क्या नाम है और मुझे
क्या करना है ।
सदा-शिव और महा
माया ने अपने उस पुत्र का नाम विष्णु रखा और उसे तपस्या करने को कहा ।
श्री विष्णु अगले 1000 देव वर्ष तक तपस्या में लीन रहे और फ़िर उनके दिव्य शरीर से जल निकलना शुरू हुआ
। उस जल ने समस्त ब्र्हमाण्ड को भर दिया ।
तब यह शक्ति (विष्णु)
तीन भागों मे विभाजित हो गयी ।
१.
कारणोंदकशायी
विष्णु या महा विष्णु
२.
गर्भोदकशायी
विष्णु
३.
क्षीरोदकशायी
विष्णु
महा विष्णु (कारणोंदकशायी विष्णु)
निराकार जो
करणोंदक पर विराजमान है । यही संसार का बीज डालते है । अग्नी, आकाश, जल, धरती और इसके अलावा मन,
समझ, अहंकार इत्यादी । यही सब कारणों का कारण
है । महामाया द्वारा रचित समस्त ब्र्हमाण्डो की आत्मा के रूप मे यह एक हजार नेत्र
और एक हजार भुजाओं के साथ चरित्र होते है ।
महा विष्णु (कारणोंदकशायी विष्णु ) उन सभी महा माया द्वारा रचित ब्र्हमाण्डों मे गर्भोदकशायी विष्णु के रूप मे प्रवेष करते हैं । हर एक ब्र्हमाण्ड मे एक गर्भोदकशायी विष्णु । यह गर्भोदकशायी विष्णु अलग-अलग महा माया द्वारा
रचित ब्र्हमाण्डों की आत्माओं की आत्मा है । इन्ही की नाभी से ब्र्ह्मा जी की उत्पती
होती है ।
क्षीरोदकशायी
विष्णु
गर्भोदक्सयि विष्णु हर ब्र्हमाण्ड में जीवित शरीरों मे क्षीरोदकशायी विष्णु के रूप में बसते है । जब हम कहते है की कण कण, हर शरीर मे भगवान है तो हम क्षीरोदकशायी विष्णु की बात करते है ।
श्री हरी विष्णु, जिनके पास
देवता मदद मांगने जाते है या जिन्हे हम परमात्मा कहते है वह क्षीरोदकशायी विष्णु ही है ।
सर्वाणि तत्र भूतानि वसन्ति परमात्मनि ।
भूतेषु च स सर्वात्मा वासुदेवस्तत: स्मृत: ।।
भूतेषु च स सर्वात्मा वासुदेवस्तत: स्मृत: ।।
पुराने ग्रन्थों के
अनुसार नारायण आदी शिव का ही रूप है । शिव ही नारायण है और शिव की शक्ति महा माया
ही नारायणी है । शिव की कुण्डिलिणि शक्ति ही महा माया या नारायणी के नाम से जानी
जाती है । वही अलग अलग रूप मे विश्व में विचरती है और उसे स्पन्दन प्रदान करती है
। यह अनन्त शक्ति (आदी शिव) जब अकेली है तो योगी (शिव) के
रूप में है जब पालन करती है तो राजा (विष्णु) के रूप मे है ।
यही शक्ति अलग अलग
कारण से अलग अलग रूप में प्रकट होती रहती है और समस्त ब्र्हमाण्ड का पालन करती है
।यह दिव्य शक्ति हर वक्त समस्त चर-अचर
ब्र्हमाण्ड को बांधे रखती है और उसका संचालन करती है । इसी शिव शक्ति को ध्यान के
समय में योगी ग्रहण करता है ।
नव नारायाण और नव नाथ
नव नारायण उन नौ नागों को शक्ति देतें है जो इस सकल ब्र्हमाण्ड
मे आध्यात्मिक कुण्लिणी शक्ति के रूप में विराजमान है । इसे ही हम विश्व
कुण्डिलिनि कहते है । इनके सकल अवतार इस प्रकार से है ।
नव नाथ
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किसका अवतार
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नव नाथ
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किस का अवतार
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मत्स्येन्द्र नाथ
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कवि नारायण
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गोपिचन्द्र नाथ
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द्रुमिल नारायण
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जलंधर नाथ
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अन्तरिक्ष नारायण
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कनिफ़ नाथ
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प्रबुद्ध नारायण
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चर्पट नाथ
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पिप्प्लायन नारायण
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नाग नाथ
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अविर्होत्र नारायण
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भर्त्रुहरि नाथ
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हरी नारायण
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रेवा नाथ
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चमस नारायण
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गहिनि नाथ
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करभज नारायण
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आदिनाथ शिव और गोरक्षनाथ इस सूची में नही है । आदिनाथ शिव
ज्योती स्वरूप के अवतार ही है । यही ओमंकार स्वरूप है । यानी परमब्र्हम शुद्ध
आत्मा , निराकार
और प्रकाशवान । जिनकी कुण्डिलिनी शक्ति आदि शक्ति महा माया है । गुरु गोरक्षनाथ जी
शिव स्वरूप यानी आदि शिव ही है । या हम कह सकते है की शिव और गोरक्षनाथ एक ही है ।
जिस प्रकार सप्तरिशि , ६ मनु , इन्द्र इत्यादी हर
मन्वन्त्र मे बदलते रहते है उसी प्रकार नव नाथ भी । पर आदि नाथ शिव और गुरू
गोरक्षनाथ नही बदलते ।
आदेश आदेश
गुरू गोरक्षनाथ जी को आदेश
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