Tuesday, 18 March 2014

यम और नियम योगी के लिये

यम और नियम योगी के लिये

सिद्ध- योगि , दरसनी योगी या कनफटा योगी के नाम से प्रसिद्ध सभी नाथ सम्प्रदाय है ! योगी का लक्श्य नाथ या स्वामी होना है ! नाथ योगी यम और नियम के दस प्रकार मानते है :-

  Siddha-Yogi , Darasani-yogi or Kanfata-Yogi are the names for Nath yogi. The main aim of a Nath is to be a master. To achieve this usually naths suggests ten steps of Yama and ten steps of Niyam. The yama are described as under:-

YAMA --- (यम)    


1.       अहिंसा – सभी जीवो के लिये ! कर्म से, मन से, वचन से ! किसी भी जीव के लिये शत्रुभाव नही !
Non-Violence – Towards every soul. Through action, words and thought.

2.       सत्यता – वाणी मे ही नही, विचार और आचार मे भी !
Truth – Not only in words but in action and livings too

3.       चोरी ना करना -  क्रिया से ही नही, विचार से और इच्छा सेभी नही! दुसरे का किसी भी प्रकार से अनुचित लाभ नही उठाना !
3.Non Stealing – Not only through action, but through thought or desire also.

4.       सभी प्रकार की विष्यासक्तियो और विशेषत योनेच्छा पर पूर्ण नियंत्र्ण तथा शारीरिक और मानसिक शक्तियो का संचय !
4.Controlling of all desires, particularly sexual desire fully. To preserve all mental and physical energies.

5.       क्षमा – दूसरे के दोषो को क्षमा करना ! यदी दुसरे किसी अन्य साधू या साधक के साथ बुरा व्यवहार करते हो तो भी बदले की ना सोचना ! कोई शिकायत नही !
5.Forgiveness – Completely forgiving other people’s personality defects. If someone mistreats yourself or any other monk who is in a spiritual path, then also forgive him completely. No complaints.

6.         धेर्य और सहनशीलता – योगी को कठिन परस्थिती का अभ्यास होना चाहिये ! कभी भी भ्र्म, दुर्बलता और परेशानी की स्थती मे नही होना चाहिये ! हर समय धेर्य और सहनशीलता बनाये रखे !
6.Patience and endurance / tolerance. – Yogi should always practice patience and tolerance. He should never be in a state of disillusion, weakness, troubled and negative situations. Path for him is not an easy one.

7.       दया – आपत्ती पर पडे हुए सभी जीवो और व्यक्तियो के प्रती दया भाव ! एक साधक को सभी जीवो के प्रती दया भाव रखना चाहिये , सभी के साथ एकता और सभी की सेवा की इच्छा रखनी चाहिये!
7.Mercy – Yogi should have pure mercy in heart. He should be able to understand the problems and should act mercifully. Should make efforts for peace, should have a desire to serve.

8.       जीवन मे सरलता – योगी के जीवन मे बनावत , छल और कुटिलता नही होनी चाहिये ! उसके निवास मे, भोजन मे, वस्त्र मे व्यवहार मे किसी प्रकार की जटिलता नही होनी चाहिये !
Simplicity in life – Yogi’s life should be simple. There is no place of wickedness in his life. Simplicity should be in his clothes, food, place of living and in his character.

9.        मिताहार – योगी को सदैव याद रखना चाहिये की भोजन शरीर रक्शा और पोषण के लिये है ना की रसना के स्वाद के लिये और न इच्छाओ की तुष्टी के लिये !
Diet – Yogi should always remember that food is for protection of his body and not for fulfilling his desires. He should be moderate on eating habits. Should restrain himself.

10.   शरीर और मन की पवित्रता – शरीर के विभिन्न अंगो को स्वच्छ रखना, शुद्धवायु, शुद्ध जल और शुद्ध भोजन ग्रहण करना चाहिये ! सत्संग करना और स्वस्थ का ध्यान रखना, मन और विचारो की शुद्धता का ध्यान रखना चाहिये !
10. Purity – Yogi should take of his personal purity. To keep body parts clean, take care that he is in taking pure breath, clean water, clean food, and using clean clothes. He should sit in likeminded people, in company of saints, should watch his thinking and should keep environment pure and clean. 

Niyama (नियम)    


1.       तप – आत्मसयम का अभ्यास ! हर प्रकार से अपने को ढाल लेना ! रूखा सूख भोजन , ठंड गर्मी सहना वस्त्र या बिना वस्त्रा के रहना सभी सुखो और विशयो पर विजय पा लेना ही तप है ! हर हालत मे प्रसन्न रहना तप है !
Tapa – To practice self restrain and self control. To accommodate in every situation. Tasteless food, extreme temperatures, to win on every desire of luxury is tapa. To be happy in every situation is tapa.

2.       संतोष – जो प्राप्त हो उसी मे संतोष करने का अभ्यास ही संतोष है ! हर प्रकार के लोभ, संसारिक वस्तुओ की प्राप्ती की कामना और जो लोग वैभव का भोग कर रहे हो उनसे जलन की भावना से मन को विरक्त रखना चाहिये ! नैतिक और आध्यात्मिक विकास की ओर चलना चाहिये !
2. Satisfaction – Yogi should have the habit to get satisfied with whatever he get.  Greed and avarice for worldly pleasures and jealousy with people enjoying pleasures are to be avoided.  Yogi should have a deep desire to increase his ethical and moral values.

3.       आस्तिक्य – गुरू पर , वेदो पर , और वर्तमान तथा प्राचीन महत्माओ पर विश्वास का अभ्यास करना चाहिये !
Surrender – Yogi should practice to have faith on his religious books, present and past saints. Heart should be free from doubts.

4.       दान – यहा दान का मतलब उदारता से है ! दयालुता, ह्रिदय की विशालता , और सहानभूती की भावना ही दान है ! भौतिक वस्तुये ही आध्यात्मिक मार्ग मे सबसे बडी रुकावटे है !
Charity – Here charity means liberal in views. Mercy, the feel of sympathy to all is charity. Worldly pleasures are the biggest obstacle in the path of spirituality.

5.       ईश्वर पूजा – शास्त्र वीधी से, प्रेम से आदर से भक्ती से उपासना ही ईश्वर पूजा है ! परमात्मा सभी नामो मे है ! किसी प्रकार की संकीर्णता हढधर्मी या धार्मिक उन्माद को नाथ कभी प्रोत्साहन नही देता!
5.नाथ के लिये शिव योग साधना का द्वार है, गुरू है, वही परम वक्तितव है पर हर धरम के लिये समभाव है
Prayer – To surrender according to ones religious books, with love, respect is prayer. Naath never encourage any religious stubbornness, extremeness, violence and madness.  To naath, Shiv is to symbol of Yoga, Doors for Yoga sadhana, utmost personality. But naath will respect all religion in a same way.

6.        वाक्य मनन – शास्त्रो का क्रमपूर्ण अधयन ही मनन है ! गुरू से सत्य समझना और पूर्ण प्रकाश की ओर बडना चाहिये ! पूर्वग्र्ह , बूरी धारणा , संकरीणता , अन्ध्विश्वास तथा साम्प्र्यदायक हठधर्मियो को मन से निकाल देना और शिव , सत्य, सुन्दर का अनुसन्धान सच्चे दिल से करना चाहिये !
Study – Analyzing   religious books is study. One should try to learn truth from his master, and should move forward towards light. One should expel superstition, religious fanatic, staunchness in religion from his mind and should explore the beauty, truth of SHIVA with pure heart.

7.       ह्रीं- मतलब की किसी बुरे या दुषित कार्य करने से, नैतिक मर्ग से हटने , मन मे बुरे विचार, भावना या इच्छा बनाये रखने से, असत्य, हानीप्रद या हिंसात्मक शब्द कथन से होने वाले पश्ताप और लज्जा से है ! केसी के चरित्र पर गलत प्रभाव डालने वाली वस्तू से घोर घ्रिणा की भावना के जगने का अभ्यास भी ह्री है
Hree – The guilt after doing any bad, low motivated work, drifting from the pious path, infected thinking, corrupt desire, abusive words, or any negative action is Hree. The development of extreme hatred for any work that corrupts character also comes under Hree.

8.       मती – का ईशारा कुशाग्र बुद्धी गहन बोध और रूची और जीवन मे आध्यात्मिक मुल्य के प्रती विवेक पूर्ण झुकाव से है ! साफ मन , विमल , विचारशील और सत्य को समाने के लिय मुक्त होना चाहिये !
8.Intellect – It is the deep desire to grasp religious and spiritual life with intelligence. Clear mind,   thoughtful attitude to grasp truth should be in a Yogi.

9.       जप – भक्ती और श्र्धासे लगातार भगवान के नाम को लेना ही जप है ! भगवान का नाम ईश्वर का जीवित शाब्दिक प्रतीक होना चाहिये ! जप से ही भक्त भगवान से सम्बन्ध बना कर रखता है ! प्रयत्न होना चाहिये की गूरू से कोई पवित्र नाम मिले ! गूरू द्वारा प्राप्त नाम शक्ती युक्त होता है !
9.Japa – To repeat lord’s name continuously with love and respect is japa. The name should be the living word representation. Yogi should take this name from his master as the name given by master is full of Lords energy.

1   होम – साधक द्वारा भक्ती भावना पूर्वक भोजन , जल तथा मुल्यवान वस्तुये भगवान को अर्पित करना ही होम है ! यह नित्य प्रती का समर्पण है ! पहले ईश्वर को समर्पित करना चाहिये फिर उसी समग्री को प्र्साद समझ कर ग्रहण करना चाहिये !
1.HOM – Yogi should first respectfully offer water, food, expensive things to his lord, then use same as a gift from his Lord. This is HOM. This should be his daily sacrifice.



आदेश आदेश
अलख निरंजन्

गुरू गोरक्षनाथ जी को आदेश

    

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